कुमाऊं विश्वविद्यालय द्वारा “उत्तराखंड में पारंपरिक पुष्प एवं जड़ी बूटियां द्वारा औषधीय हर्बल चाय का विकास” द्वारा तीन प्रमुख श्रेणियां में हर्बल टी की जा रही विकसित
आज राजभवन में कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल की कुलपति प्रोफेसर दीवान सिंह रावत द्वारा “वन यूनिवर्सिटी वन रिसर्च” कार्यक्रम के अंतर्गत चल रहे शोध कार्यों की प्रगति पर राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह को प्रस्तुतिकरण दिया गया । कुमाऊं विश्वविद्यालय द्वारा “उत्तराखंड में पारंपरिक पुष्प एवं जड़ी बूटियां द्वारा औषधि हर्बल चाय का विकास” विषय पर शोध किया जा रहा है। प्रोफेसर रावत ने शोध के उद्देश्य और प्रमुख निष्कर्ष के विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि शोध का उद्देश्य उत्तराखंड के पारंपरिक पुष्प एवं जड़ी बूटियां से तैयार हर्बल टी को वैज्ञानिक परीक्षणों से प्रमाणित करना है जिससे उनकी औषधीय गुणवत्ता सिद्ध हो सके। उन्होंने बताया कि शोध के अंतर्गत 30 से अधिक पारंपरिक पुष्प एवं जड़ी बूटियो के तहत तीन प्रमुख श्रेणियो की हर्बल टी विकसित की जा रही है। जिसमें एंटी डायबिटिक टी, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली चाय और एंटी वायरल हर्बल चाय शामिल है।
प्रोफेसर रावत ने बताया कि कोविड-19 के बाद हर्बल उत्पादों की मांग में तेजी से वृद्धि हुई है। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड के पारंपरिक पुष्प एवं जड़ी बूटिया दुर्लभ और औषधीय गुणो से भरपूर है, जो अभी भी व्यापक रूप से उपयोग में नहीं आ पाई है। प्रस्तुतीकरण में वैज्ञानिक प्रामाणिकता और डीएनए बार कोडिंग तकनीक के बारे में बताया गया। जिससे जड़ी बूटियां के प्रमाणिकता सुनिश्चित करने, मिलावट को रोकने और जैव चोरी बायोपायरेसी को नियंत्रित करने में सहायता मिलेगी।
सबसे बड़ा राज्यपाल ने शोध की सराहना करते हुए कहा कि यह शोध उत्तराखंड के समृद्ध औषधीय परंपरा को वैज्ञानिक आधार प्रदान करेगी और सतत विकास को बढ़ावा देंगी। उन्होंने कहा कि इस अध्ययन का लाभ स्थानीय समुदायों तक पहुंचना चाहिए , जिससे राज्य के किसानों और उद्योगों को आर्थिकी बढ़ाने के अवसर प्राप्त हो सके। उन्होंने उत्तराखंड की औषधीय जड़ी बूटियां को वैश्विक पहचान दिलाने और वैज्ञानिक अनुसंधान को व्यावसायिक रूप देने के लिए संस्थाओं , वैज्ञानिकों और उद्योगों के समन्वय की आवश्यकता पर बल दिया। राज्यपाल ने कहा कि इस शोध के साथ राज्य के युवाओं को जैव प्रौद्योगिकी और हर्बल उत्पाद की विकास के क्षेत्र में नए अवसर मिलेंगे और उत्तराखंड का पारंपरिक ज्ञान आधुनिक विज्ञान के साथ मिलकर आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति को दिशा देगा।