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यूकॉस्ट ने हिमालयी राज्यों के विज्ञान संचार पर आयोजित कराया महत्वपूर्ण पैनल डिस्कशन

 

19वें उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सम्मेलन 2024 मे हिमालयी क्षेत्र में विज्ञान संचार के महत्व पर आयोजित हुई महत्वपूर्ण गोष्ठी

मीडीया, मास कम्युनिकेशन, विज्ञान संचारक, शिक्षा के जगत से जुड़े बुद्धिजीवी ने सुझाए महत्वपूर्ण कदम

देहरादून, 30 नवंबर 2024: उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद यूकॉस्ट द्वारा आयोजित 19वें उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सम्मेलन 2024 के तीसरे और अंतिम दिन विज्ञान संचार के महत्व पर एक विशेष सत्र का आयोजन किया गया। दून विश्वविद्यालय के डॉ. नित्यानंद ऑडिटोरियम में आयोजित इस सत्र में हिमालयी क्षेत्र की चुनौतियों और विज्ञान संचार के माध्यम से समाधान पर चर्चा की गई।

सत्र का समन्वय अमित पोखरियाल, पोखरियाल प्रबंधक जनसम्पर्क यूकॉस्ट ने किया और सभी पैनलिस्ट और अतिथियों का स्वागत किया और उन्होंने बताया कि हिमालयी राज्यों विशेषकर उत्तराखंड मे राष्ट्रीय व राज्य स्तर के विभिन्न वैज्ञानिक संस्थान उत्तराखंड मे स्थापित हैं, इतने विज्ञान आधारित संस्थान शायद ही किसी अन्य राज्य मे उपलब्ध होंगे, तो राज्य मे विज्ञान आधारित सोच को बढ़ाने के लिए मीडिया और संस्थानो के मध्य समन्वय होना आवश्यक है जिससे समाज को लाभ प्राप्त हो सके.

प्रो. दुर्गेश पंत, महानिदेशक यूकॉस्ट ने सत्र सभी पैनलिस्ट और मीडिया प्रतिनिधियों को सम्मानित किया। उन्होंने कहा कि विज्ञान-संचार समाज को सशक्त बनाने और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने का एक प्रभावी माध्यम है। उन्होंने जोर दिया कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के दस्तावेजीकरण की जरूरत है और यूकॉस्ट युवा पत्रकारों के लिए विज्ञान परियोजनाओं में इंटर्नशिप की सुविधा प्रदान कर रहा है।

सत्र के दौरान रवि बिजारनिया, उप निदेशक, सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग,उत्तराखंड ने कई सुझाव दिए कि कैसे विज्ञान और मीडिया का बेहतर समन्वयन हो सकता है.

सत्र के दौरान, डॉ. जी.एस. रौतेला, विज्ञान संचारक ने कहा कि समाज का हर हिस्सा विज्ञान से प्रभावित होता है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का जिक्र करते हुए बताया कि कोर्ट ने भी समाज में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के महत्व को स्वीकार किया है। उन्होंने अंधविश्वासों को दूर करने और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने में विज्ञान-संचार की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने महामारी कोविड 19 व हरित क्रांति जैसे उदाहरण देते हुए बताया कि विज्ञान-संचार डिजिटल विभाजन को पाटने में कैसे सहायक हो सकता है।

हिमालयी क्षेत्र की चुनौतियों पर चर्चा करते हुए रजत शक्ति (रेड एफएम) ने भारतीय सभ्यता का उदाहरण दिया और कहा कि हमारे पास प्राचीन काल से ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण रहा है। उन्होंने विज्ञान और प्रौद्योगिकी को प्रभावी रूप से समाज तक पहुंचाने के लिए स्वैच्छिक प्रयासों की आवश्यकता बताई।

प्रो. राशी मिश्रा, हैड विज्ञान संचार विभाग, दून विश्वविद्यालय ने कहा कि विज्ञान-संचार को प्राथमिक स्तर पर बढ़ावा देना आवश्यक है। उन्होंने शोधकर्ताओं और मीडिया के बीच संवाद की कमी को एक बड़ी चुनौती बताया।

इसी क्रम में, किशोर रावत एनडीटीवी ने कहा कि शोधकर्ताओं और मीडिया के बीच बेहतर समन्वय से सही और सटीक जानकारी का प्रचार किया जा सकता है।

शिवानी आजाद, वरिष्ठ संवाददाता द टाइम्स ऑफ इंडिया ने कहा कि छात्रों को स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।

विदुषी निशंक, चैयरमेन,स्पर्श हिमालय फाउंडेशन ने कहा कि सामुदायिक स्तर पर विज्ञान की बुनियाद मजबूत करने की आवश्यकता है।

सत्र के दौरान यह भी चर्चा की गई विनोद मुसान, वरिष्ठ पत्रकार हिन्दुस्तान ने बताया कि कैसे मोबाइल फोन जैसे उपकरण वैज्ञानिक संवाद का एक प्रमुख माध्यम बन सकते हैं। इसके साथ ही, स्थानीय भाषाओं और प्रौद्योगिकियों का उपयोग करते हुए संवाद की प्रभावशीलता बढ़ाने की रणनीतियों पर जोर दिया गया।

सत्र के अध्यक्षता कर रहे डा. अजीत पाठक, राष्ट्रीय अध्यक्ष, पब्लिक रिलेशंस सोसाइटी ऑफ इंडिया ने कहा कि हिमालय और विज्ञान के बारे में दुनिया जानना चाहती है, और विज्ञान-संचार इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने कहा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी को सामुदायिक स्तर तक ले जाना और इसे विकास और उद्यमिता का माध्यम बनाना समाज की प्रगति का आधार हो सकता है।

इस सत्र में रेड एफएम की सेंटर हेड रजत शक्ति, टाइम्स ऑफ इंडिया की शिवानी आजाद, एनडीटीवी के किशोर रावत, स्पर्श फाउंडेशन की विदुषी निशंक, शिक्षाविद पूजा पोखरियाल, पूनम शर्मा, स्पैक्स के सचिव बृजमोहन शर्मा, सूचना विभाग से सुरेश भट्ट, सचिव पीआरएसआई देहरादून चैप्टर कई शिक्षाविदों व मीडिया पेशेवरों ने भाग लिया। यह सत्र हिमालयी क्षेत्र में विज्ञान-संचार के महत्व को रेखांकित करने और समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।

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