Sunday, December 8, 2024
Google search engine
Homeउत्तराखंडत्रिवेंद्र सिंह पंवार: उत्तराखंड संघर्ष के योद्धा को भावभीनी विदाई

त्रिवेंद्र सिंह पंवार: उत्तराखंड संघर्ष के योद्धा को भावभीनी विदाई

उत्तराखंड के राज्य के लिए संघर्ष में एक प्रमुख व्यक्ति और उक्रांद के पूर्व अध्यक्ष और संरक्षक त्रिवेंद्र सिंह पंवार के निधन ने कई लोगों के दिलों में एक गहरा शून्य छोड़ दिया है। ऋषिकेश में आज गमगीन दिन पर, हजारों लोग एक ऐसे व्यक्ति को अंतिम विदाई देने के लिए एकत्र हुए, जिसका क्षेत्र और उसके लोगों के प्रति जुनून उनके जीवन के अधिकांश कार्यों को परिभाषित करता था। 69 वर्ष की आयु में, पंवार देररात्रि नटराज चौक पर दुखद बेक़ाबू ट्रक ने उन्हें टक्कर मारी, जिससे लगी चोटों के कारण दम तोड़ गए, जिससे उत्तराखंड की बेहतरी के लिए समर्पित उनके जीवन का असामयिक अंत हो गया।

 

23 अप्रैल 1987: उत्तराखण्ड राज्य की मांग का ऐतिहासिक दिन
…………………………………………

त्रिवेंद्र सिंह पंवार के 30 सालों के साथी इन दिनों हल्द्वानी में रह रहे राज्य के वरिष्ठ पत्रकार श्री जगमोहन रौतेला के अनुसार 23 अप्रैल 1987 का दिन भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ का प्रतीक बन गया। इस दिन लोकसभा में प्रश्न काल के दौरान, केंद्रीय परिवहन मंत्री जगदीश टाइटलर संसद में उपस्थित सांसदों के प्रश्नों का उत्तर दे रहे थे, कि अचानक दर्शक दीर्घा से एक युवक ने पर्चे फेंके। “आज दो, अभी दो, उत्तराखण्ड राज्य दो” का नारा लगाते हुए उसने उत्तराखण्ड राज्य की मांग को सीधे सदन तक पहुंचाने का प्रयास किया। यह घटना न सिर्फ तत्कालीन कांग्रेस सरकार की नींद उड़ाने वाली थी, बल्कि उत्तराखण्ड राज्य की स्थापना को लेकर चल रहे आंदोलन का एक महत्वपूर्ण क्षण भी साबित हुई। इस युवक का नाम त्रिवेंद्र पंवार था, जो उस समय उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के वरिष्ठ उपाध्यक्ष थे। उनके द्वारा फेंके गए पर्चों में स्पष्ट रूप से उत्तराखण्ड राज्य की मांग का समर्थन किया गया था। यह नारा केवल एक व्यक्तिगत प्रदर्शन नहीं था, बल्कि यह दिखाता था कि उत्तराखण्ड के लोग किस प्रकार अपने वंचित अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे थे। पंवार ने मात्र यह संदेश देने का प्रयास किया कि जनता की आवाज़ को सुनना आवश्यक है, और इसे सीधे संसद में लाना चाहिए। घटना के तुरंत बाद, लोकसभा की सुरक्षा व्यवस्था ने तेजी से कार्य किए और पंवार को हिरासत में ले लिया गया। सुरक्षा कर्मियों द्वारा उनसे पूछताछ की गई, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि उनका कोई अन्य मकसद नहीं था, सिवाय इसके कि उत्तराखण्ड राज्य की बहु-लंबित मांग को उचित मंच पर लाया जा सके। इस घटना ने न केवल सदन में हलचल पैदा की, बल्कि इसके बाद गुप्तचर एजेंसियों की गतिविधियों को भी तेज कर दिया। उनकी जानकारी को उत्तराखण्ड और दिल्ली के संबंधित अधिकारियों तक पहुंचाने में कोई समय नहीं लगा।

25 अप्रैल 1987 का दिन उत्तराखण्ड की राजनीति के लिए महत्वपूर्ण था, जब त्रिवेंद्र पंवार को तिहाड़ जेल से रिहा करने के आदेश जारी किए गए। उनकी रिहाई के पीछे सदन की राय थी, जिसने इस मुद्दे पर एक निश्चित दिशा निर्धारित की। त्रिवेंद्र पंवार, जो उक्रान्द के नेता थे, उत्तराखण्ड राज्य की मांग का एक महत्वपूर्ण चेहरा बन चुके थे।उनकी रिहाई के बाद, इस बात की संभावना बढ़ गई कि राज्य की मांग फिर से सामने आएगी। पंवार टिहरी गढ़वाल के सांसद व केंद्रीय मंत्री ब्रह्म दत्त के द्वारा जारी पास के आधार पर संसद भवन की दर्शक दीर्घा में गए थे। उनके चाचा दिल्ली में प्रभावशाली नेता उम्मेद सिंह पंवार ने यह पास दिलवाया था। जगमोहन रौतेला बताते हैं कि उम्मेद जी नई दिल्ली में निर्मल टॉवर के मालिक थे और कभी संजय गांधी के खास माने जाते थे।

पंवार का दृष्टिकोण राजनीतिक मान्यता के संघर्ष से आगे तक फैला हुआ था; उन्होंने एक समृद्ध और आत्मनिर्भर उत्तराखंड की परिकल्पना की थी। क्षेत्र के लिए उनका योगदान केवल राजनीतिक नहीं था; वे सामाजिक विकास और सामुदायिक कल्याण के लिए व्यापक प्रतिबद्धता को समाहित करते हैं। अपनी सेवा के वर्षों के दौरान, पंवार ने यह सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया कि हाशिए पर पड़े लोगों की आवाज़ सुनी जाए और उनकी ज़रूरतों को पूरा किया जाए। उनकी विरासत निस्संदेह उत्तराखंड में नेताओं और कार्यकर्ताओं की भावी पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।

ऋषिकेश के स्थानीय लोगों के अनुसार, त्रिवेंद्र पंवार उन व्यक्तियों में से एक थे जिन्होंने राज्य निर्माण के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1994 से 2000 तक के वर्षों तक, जब ऋषिकेश का बाजार, सरकारी कार्यालय बंद होता था, पंवार सबसे आगे होते थे, यह सुनिश्चित करने के लिए कि सभी दुकानें, कार्यालय बंद हों और राज्य के निर्माण की प्रक्रिया में तेजी लाई जा सके। उनकी समर्पण और सक्रियता ने उन्हें अपने क्षेत्र का एक जाना माना चेहरा बना दिया।

2000 में उत्तराखंड राज्य का निर्माण होने के बाद, जहाँ एक ओर नई संभावनाएँ खुली, वहीं दूसरी ओर बेरोजगारी और अन्य सामाजिक समस्याएँ बढ़ने लगीं। त्रिवेंद्र पंवार इस स्थिति से संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने हर विधानसभा सत्र में देहरादून के रिस्पना पुल पर जनता की आवाज को उठाने का प्रयास किया। पत्रकार हरीश थपलियाल ने बताया कि पिछले साल, सत्र के बाहर पंवार ने लगभग आधा दर्जन पुलिस अधिकारियों को अपने वजनी हाथों (पौंछी ) से अपने रास्ते से हटाया। अपने दृढ़ संकल्प के साथ जनता को विधानसभा भवन की ओर ले जाने के लिए ललकारा। यह घटना न केवल उनके व्यक्तिगत साहस की निशानी थी, बल्कि राज्य के नागरिकों के प्रति उनकी गहरी संवेदनशीलता को भी दर्शाती है।

उक्रांद जैसे संगठन के लिए, त्रिवेंद्र पंवार ने हमेशा एक संजीविनी का कार्य किया। उन्होंने अपनी विचारधारा और संघर्ष के माध्यम से राजनीतिक मैदान में लोगों की समस्याओं को उठाने का कार्य किया। लेकिन कल रात, यह संजीविनी एक दुखद अंत को प्राप्त हुई। यह घटना न केवल उनके समर्थकों के लिए, बल्कि उन सभी लोगों के लिए एक गहरा सदमा है जो राज्य के विकास और सामाजिक न्याय के लिए उनकी प्रतिबद्धता को पहचानते थे।

उनकी यात्रा एक सच्चे राजनीतिक कार्यकर्ता की है, जिसने संघर्षों से भरे अपने जीवन में हर कठिनाई का सामना किया। उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद, पंवार ने कई चुनाव लड़े, लेकिन उन्हें कभी भी सफलता नहीं मिल सकी। यही कारण था कि उनके संघर्ष को पहचानने की आवश्यकता है। त्रिवेंद्र पंवार का राजनीतिक जीवन मुख्यत: ऋषिकेश से जुड़ा रहा। यहीं उन्होंने युवा अवस्था से ही सक्रियता दिखाई और राजनीति में कदम रखा। वह एक ऐसे नेता थे जो लोगों के प्रति निष्काम सेवा भावना रखते थे। उनकी कर्मस्थली ऋषिकेश पर आधारित होने के कारण, उन्होंने वहाँ की समस्याओं को समझा और उनके समाधान के लिए प्रयास किए। लेकिन शायद प्रतापनगर वासियों ने उन्हें उतना पसंद नहीं किया, जिसका असर उनके चुनावी परिणाम पर पड़ा।

अपने जवान अविवाहित पुत्र को 2015 में बुखार से खो देने के कारण त्रिवेंद्र टूट गए थे। पिछले कुछ सालों से वह सक्रिय हो गए थे। उत्तराखंड में भूमि कानून लाने के लिए आंदोलन कर रहे थे। इसके लिए वह अगले माह कुमाऊँ और गढ़वाल कमिश्नर कार्यालय घेरने के लिए रणनीति बना रहे थे।

भरपुरया गांव, टिहरी, प्रतापनगर मूल के 69 साल के पंवार शुरुआत से ही ऋषिकेश में रहे। उनका पहले ट्रांसपोर्ट का काम रहा। लेकिन उक्रांद के लिए उन्होंने अपना जीवन लगा दिया। जब उक्रांद (उत्तराखंड क्रांति दल) को लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की आवश्यकता होती थी, तब पंवार हमेशा आगे आते थे। यह उनकी प्रतिबद्धता और नेतृत्व कौशल का उदाहरण है। वह उन चुनिंदा नेताओं में से एक थे जिन्हें सत्ता का राजप्रसाद नहीं मिला, फिर भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी। इस संघर्ष में, उन्हें यह समझना पड़ा कि राजनीति केवल सत्ता में आने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह समाज के प्रति जिम्मेदारियों को निभाने का भी एक जरिया है।

पंवार की विशेषता यह थी कि वह हमेशा लोगों के साथ खड़े रहते थे, चाहे दिन हो या रात। उनके इस सदाचार ने उन्हें जनता के बीच एक विशिष्ट स्थान दिलाया। उन्होंने अपने कार्यों के माध्यम से दिखाया कि एक नेता का कर्तव्य सिर्फ चुनाव जीतना नहीं होता, बल्कि लोगों की सेवा करना और उनके मुद्दों को उठाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

शीशपाल गुसाईं

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Advertisement

spot_img

MDDA

spot_img

Latest News

STAY CONNECTED

123FansLike
234FollowersFollow
0SubscribersSubscribe