एक शिक्षक होने के नाते मैं हमेशा बच्चों से वार्तालाप करना पसंद करता हूँ | गर्मियों की छुट्टियों में अपने मूल स्थान अल्मोड़ा जनपद के स्याल्दे विकासखंड के डुंगरी गांव गया था | वहां बच्चों ने एक अद्भुत प्रश्न मुझसे पूछा कि कंप्यूटर हर भाषा और विषय के आदेशों का पालन कैसे करता है ? क्या एक कंप्यूटर हर भाषा को समझ सकता है? बच्चे की रूचि और जिज्ञाषा ने मुझ में भी एक जोश जागृत कर दिया | मैंने उसे समझाया कि कंप्यूटर केवल एक ही भाषा समझाता है और वह भाषा है बाइनरी भाषा यानि केवल शून्य और एक को ही समझ सकता है | अन्य बच्चे भी इससे सम्बंधित कई प्रश्न पूछने लग गए |
जिस प्रकार हम आपस में बात चीत करने के लिए किसी न किसी भाषा या बोली का प्रयोग करते हैं, ठीक उसी प्रकार कंप्यूटर भी एक भाषा का उपयोग करता है, जिसे हम द्विआधारी संख्या प्रणाली (Binary Number System) के नाम से जानते हैं और जिसका आधार 2 होता है | जैसे दशमलव संख्या प्रणाली में संख्याओं को लिखने के लिए 0-9 तक के कुल 10 अंक है (दशमलव = 10 आधार वाला), वैसे ही बाइनरी नंबर सिस्टम में कोई भी संख्या सिर्फ 2 अंको के माध्यम से ही लिखी जाती है, वे दो अंक है 0 और 1।
बाइनरी नंबर सिस्टम को हिंदी भाषा में द्विआधारी संख्या प्रणाली भी कहते हैं. द्विआधारी शब्द में ‘द्वी और बाइनरी शब्द में ‘बाई ’ का मतलब है, दो | इस प्रणाली में केवल दो अंक होते हैं, ‘0’ और ‘1’. जहाँ, ‘0’ का मतलब स्विच ऑफ होता है,और ‘1’ का मतलब स्विच ऑन होता है | क्योंकि, बाइनरी नंबर सिस्टम में केवल दो अंक होते हैं. इसीलिए, इसका बेस या आधार ‘2‘ होता है | यह प्रणाली कंप्यूटर विज्ञान और डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक्स की मूलभूत आधारशिला है। कंप्यूटर सिस्टम और डिजिटल उपकरणों में डेटा को स्टोर और प्रोसेस करने के लिए बाइनरी प्रणाली का उपयोग किया जाता है।
उदाहरण के लिए, दशमलव प्रणाली में संख्या 5 को बाइनरी प्रणाली में 101 के रूप में लिखा जाता है। बाइनरी संख्या प्रणाली में 0 और 1 को बिट कहा जाता है और 8 बिट्स का समूह एक बाइट (byte) कहलाता है। हर वाक्य , चाहे वह हिंदी में हो या किसी भी भाषा में , जब कंप्यूटर में स्टोर होता है, तो बाइनरी में कन्वर्ट होकर ही स्टोर होता है | कंप्यूटर सिर्फ बाइनरी को समझता है, जो की 0 और 1 का कॉम्बिनेशन होता है | हर करैक्टर का अपना एक यूनिक बाइनरी रिप्रजेंटेशन होता है |
बाइनरी नंबर्स के प्रमाण प्राचीन मिस्र, चीन और भारतीय सभयताओं में मिलते हैं लेकिन आधुनिक बाइनरी नंबर सिस्टम को यूरोप में 16 वीं और 17 वीं शताब्दी में थॉमस हैरियट , जुआन कारमुएल वाई लोबकोविट्ज़ और गॉटफ्रीड लीबनिज ने रचा था |
बाइनरी प्रणाली का मुख्य लाभ यह है कि यह इलेक्ट्रॉनिक सर्किट में आसानी से लागू की जा सकती है। डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक्स में, 0 और 1 को वोल्टेज स्तरों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जहां 0 निम्न वोल्टेज (low voltage) और 1 उच्च वोल्टेज (high voltage) को दर्शाता है। यह सरलता बाइनरी प्रणाली को कंप्यूटर हार्डवेयर में व्यापक रूप से उपयोग करने योग्य बनाती है।
कंप्यूटर में डेटा प्रोसेसिंग, मेमोरी स्टोरेज, और ट्रांसमिशन के लिए बाइनरी प्रणाली का उपयोग किया जाता है। कंप्यूटर में विभिन्न प्रकार की गणनाओं और लॉजिकल ऑपरेशनों को बाइनरी कोड के माध्यम से किया जाता है। इसके अलावा, सभी प्रकार के डिजिटल डेटा जैसे टेक्स्ट, इमेज, ऑडियो, और वीडियो को भी बाइनरी फॉर्मेट में कनवर्ट कर स्टोर किया जाता है।
प्रसिद्ध गणितज्ञ गॉटफ्रेड विल्हेम लीबनिज ने बाइनरी प्रणाली की अवधारणा को 17वीं शताब्दी में तार्किक आधार दिया था। उन्होंने यह दिखाया कि कैसे बाइनरी प्रणाली का उपयोग गणितीय समस्याओं को हल करने के लिए किया जा सकता है। आधुनिक कंप्यूटर विज्ञान में, बाइनरी प्रणाली की उपयोगिता अद्वितीय है और इसके बिना आधुनिक तकनीक की कल्पना भी नहीं की जा सकती। निष्कर्षतः, बाइनरी प्रणाली डिजिटल युग की नींव है, जो कंप्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के कार्य को संभव बनाती है। इसकी सरलता और दक्षता इसे आज के समय की सबसे महत्वपूर्ण संख्यात्मक प्रणाली बनाती है।
अंक 5 को बाइनरी सिस्टम में लिखने की विधि निम्नवत है:
(a) 5 को 2 से भाग दें और शेष बचाएं:
5 ÷ 2 = 2, शेष 1
(b) फिर 2 को 2 से भाग दें और शेष बचाएं:
2 ÷ 2 = 1, शेष 0
(c) अंत में 1 को 2 से भाग दें और शेष बचाएं:
1 ÷ 2 = 0, शेष 1
अब शेष बचे अंकों को नीचे से ऊपर की ओर पढ़ें:
शेष 1 (आखिरी भागफल), शेष 0, शेष 1, तो, 5 का बाइनरी रूप है 101।
बाइनरी में किसी संख्या को स्टोर करने का मतलब है कि उस संख्या को बाइनरी (0 और 1) के रूप में प्रस्तुत करके कंप्यूटर की मेमोरी में संग्रहीत करना। कंप्यूटर बाइनरी सिस्टम का उपयोग करता है, इसलिए इसे समझने और स्टोर करने के लिए सभी डेटा को बाइनरी में बदलना पड़ता है।
100 को बाइनरी में 1100100 लिखा जाता है | जबकि 1000 को 1111101000 | हर वाक्य को लिखने में कंप्यूटर पहले एनकोडिंग में कन्वर्ट करता है | एन्कोडिंग स्कीम (jaise UTF-8 ya ASCII) के माध्यम से bytes में कन्वर्ट किया जाता है | UTF-8 ek कॉमन एन्कोडिंग है जो हर करैक्टर को एक unique byte सीक्वेंस में बदलाता है |
0.25 को बाइनरी नंबर में बदलने का तरीका इस तरह है |
चरण 1: दशमलव संख्या 0.25 को बाइनरी में बदलने के लिए, हम इसे 2 से गुणा करते हैं और पूर्णांक भाग को नोट करते हैं।
चरण 2: गुणा करना और पूर्णांक भाग को नोट करना
0.25 * 2 = 0.50 (पूर्णांक भाग: 0)
0.50 * 2 = 1.00 (पूर्णांक भाग: 1)
अब क्योंकि परिणाम 1.00 आ गया है, दशमलव भाग 0 हो गया है और प्रक्रिया यहीं समाप्त होती है।
चरण 3: परिणामों को मिलाना:
गुणा के पूर्णांक भागों को क्रम में लिखते हैं: पहला पूर्णांक भाग: ०, दूसरा पूर्णांक भाग: १| इस प्रकार, 0.25 का बाइनरी रूपांतरण 0.01 होता है।
आज से लगभग २३०० साल पहले भारतीय गणितज्ञ पिंगला ने वास्तव में बाइनरी सिस्टम कि अवधारणा स्थापित कर दी थी | उन्होंने चांडाल शास्त्र लिखा, जहाँ उन्होंने संस्कृत के काव्य का गणितीय रूप से विश्लेषण किया। इसमें बाइनरी नंबर, फाइबोनैचि संख्या और पास्कल के त्रिकोण के पहले ज्ञात स्पष्टीकरण भी शामिल थे। छंदशास्त्र, जिसे पिंगला सूत्र भी कहते हैं, का अर्थ मीटर या छंद का विज्ञान है और यह अक्षरों के उच्चारण से संबंधित है। इसमें आठ अध्यायों में वितरित 315 सूत्र हैं। संस्कृत छंदशास्त्र में दो मूल इकाइयाँ हैं: लघु (एकल मात्रा) और गुरु (दो मात्राएँ)। पिंगला ने द्विआधारी प्रणाली का उपयोग करते हुए लघु और गुरु अक्षरों की पूर्व निर्धारित व्यवस्था से छंदों की व्यवस्थित गणना को बाइनरी संख्या प्रणाली के पहले उदाहरण के रूप में वर्णित किया। पिंगला की प्रणाली में बाइनरी संख्याएँ दाईं ओर बढ़ती हैं और संख्याएँ एक से शुरू होती हैं, जहाँ 0000 का मान एक होता है।
पिंगला द्वारा प्रस्तुत द्विआधारी प्रणाली में हर छंद को लघु (लाइट)और गुरु (हैवी) मात्रा के साथ रचित किया गया है.|
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्व मे व मा ता च पि ता त्व मे व
L H L H H L L H L H L
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव
त्व मे व बन् धुश् च स खा त्व मे व
L H L H H L L H L H L
यदि लघु, को शून्य और दीर्घ को एक लिखा जाय तो यह आज के बाइनरी नंबर सिस्टम का मूल प्रारूप जैसा ही है | इस प्रकार पिंगला का योगदान कंप्यूटर विकास में नींव का पत्थर साबित हुवा |
चन्दन घुघत्याल
गणित विभागाध्यक्ष
द दून स्कूल
देहरादून