Google search engine
Homeराज्य समाचारपूर्ण सिंह नेगी: देहरादून का दानवीर, जिसने शिक्षा को बनाया अमर धरोहर

पूर्ण सिंह नेगी: देहरादून का दानवीर, जिसने शिक्षा को बनाया अमर धरोहर

देहरादून की हरी-भरी वादियों में, जहाँ प्रकृति अपनी सौम्यता बिखेरती है, वहाँ एक ऐसी आत्मा ने जन्म लिया, जिसने अपने जीवन को समाज के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। श्री पूर्ण सिंह नेगी—एक नाम, जो न केवल देहरादून के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है, बल्कि हर उस दिल में बस्ता है, जो उदारता और परोपकार की मिसाल को सलाम करता है। उनका जीवन एक ऐसी गाथा है, जो दानशीलता, शिक्षा के प्रति अगाध प्रेम और समाज के उत्थान के लिए अटूट संकल्प की जीवंत कहानी कहती है।

एक साधारण शुरुआत, असाधारण सपने

1832 में देहरादून के करणपुर ग्राम में जन्मे ठाकुर पूर्ण सिंह नेगी का प्रारंभिक जीवन समृद्धि और संस्कारों से परिपूर्ण था। एक प्रतिष्ठित जमींदार परिवार में जन्मे पूर्ण सिंह को न केवल धन-धान्य की प्रचुरता मिली, बल्कि शिक्षा का वह अमूल्य रत्न भी प्राप्त हुआ, जो उस युग में दुर्लभ था। उनकी प्रबुद्ध बुद्धि और संवेदनशील हृदय ने उन्हें समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी का बोध कराया। वह युग था, जब शिक्षा का प्रकाश गिने-चुने लोगों तक ही सीमित था, और सामाजिक सुधारों की हवा धीरे-धीरे बह रही थी। ऐसे में, पूर्ण सिंह नेगी का मन केवल अपनी समृद्धि तक सीमित न रहा; उनके सपनों का आकाश समाज के हर कोने को आलोकित करने का था।

उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था। एक ओर वे जमींदार थे, जिनके पास विशाल भू-संपत्ति, कोठियाँ और जंगल थे; दूसरी ओर एक कुशल उद्यमी, जिन्होंने राजपुर रोड पर “पूर्ण सिंह एण्ड कम्पनी” के नाम से फर्नीचर का कारखाना स्थापित किया। उनकी बनाई कोठियाँ देहरादून की शान थीं, जो किराए पर देकर समाज के लिए आय का स्रोत बनीं। लेकिन पूर्ण सिंह का असली धन उनकी उदारता थी, जो उनके हर कार्य में झलकती थी।

शिक्षा: एक पवित्र मिशन

पूर्ण सिंह नेगी के हृदय में शिक्षा के प्रति एक अनन्य प्रेम था। वे मानते थे कि शिक्षा वह दीपक है, जो अज्ञानता के अंधेरे को चीरकर समाज को प्रगति के पथ पर ले जाता है। 1902 में, उन्होंने देहरादून में एक संस्कृत पाठशाला की स्थापना की। यह केवल एक स्कूल नहीं था, बल्कि भारतीय संस्कृति और ज्ञान की रक्षा का उनका संकल्प था। संस्कृत, जो हमारी प्राचीन परंपराओं का आधार थी, उसकी शिक्षा को बढ़ावा देकर उन्होंने नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़े रखने का प्रयास किया।

लेकिन उनका यह मिशन यहीं नहीं रुका। उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया, जब उनकी मुलाकात समाज सुधारक और आर्य समाजी विचारधारा के प्रबल समर्थक श्री ज्योति स्वरूप से हुई। ज्योति स्वरूप ने मेरठ में स्थापित डी.ए.वी. हाई स्कूल को देहरादून स्थानांतरित करने का सपना देखा, ताकि इस क्षेत्र के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सके। पूर्ण सिंह नेगी, जो उस समय 70 वर्ष की आयु पार कर चुके थे और निःसंतान थे, ने इस सपने को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया।

दानशीलता का स्वर्णिम अध्याय

पूर्ण सिंह नेगी की दानशीलता का वास्तविक स्वरूप तब सामने आया, जब उन्होंने डी.ए.वी. कॉलेज ट्रस्ट एंड मैनेजमेंट सोसाइटी, कानपुर को अपनी प्रायः समस्त संपत्ति दान करने का निर्णय लिया। 1906 में शुरू हुआ यह दान 1911 में अपने चरम पर पहुँचा, जब उन्होंने अपनी बेशकीमती जमीन, कोठियाँ और विशाल जंगल डी.ए.वी. ट्रस्ट के नाम कर दिए। इस संपत्ति का मूल्य उस समय लाखों रुपये था, जो आज के समय में अकल्पनीय है। लेकिन पूर्ण सिंह के लिए यह संपत्ति केवल साधन थी—एक साधन, जिसके माध्यम से वे समाज के लिए कुछ अमर रच सकते थे।

उनकी दानशीलता का सबसे भावपूर्ण प्रतीक है देहरादून में डी.ए.वी. कॉलेज का मुख्य भवन, जिसे स्थानीय लोग “पीली कोठी” के नाम से जानते हैं। इस भवन का निर्माण पूर्ण सिंह ने अपने व्यक्तिगत खर्च पर करवाया, जिस पर उस समय 40,000 रुपये का व्यय हुआ। इसकी भव्यता और मजबूती उनकी दूरदर्शिता की गवाही देती है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने दो छात्रावासों का निर्माण भी करवाया, जिनमें से एक का नाम “पूर्ण आश्रम” रखा गया। ये छात्रावास उन बच्चों के लिए आश्रय बने, जो दूर-दराज से ज्ञान की तलाश में देहरादून आए।

पूर्ण सिंह की उदारता का सबसे मार्मिक पहलू यह था कि उन्होंने अपनी दोनों पत्नियों के लिए केवल 50-50 रुपये मासिक पेंशन का प्रबंध किया और यह निर्देश दिया कि उनकी मृत्यु के बाद यह राशि भी डी.ए.वी. ट्रस्ट को मिले। यह उनकी निस्वार्थता का ऐसा उदाहरण है, जो हृदय को स्पर्श करता है। उन्होंने अपने लिए कुछ भी नहीं रखा, सिवाय उस संतोष के, जो समाज की सेवा से मिलता है।

चुनौतियाँ और अटूट विश्वास

पूर्ण सिंह नेगी का मार्ग आसान नहीं था। डी.ए.वी. स्कूल के प्रारंभिक वर्षों में प्रबंधन की कमियों और आंतरिक मतभेदों के कारण कई हेडमास्टर बदल गए, जिससे उन्हें गहरा दुख हुआ। उनकी आत्मा उस समय व्यथित हुई, जब उनके सपनों का मंदिर प्रबंधकीय अस्थिरता से जूझ रहा था। लेकिन 1911 में श्री लक्ष्मण प्रसाद के हेडमास्टर बनने के बाद स्कूल का प्रबंधन सुधरा, और इसकी प्रतिष्ठा बढ़ी। इस सुधार ने पूर्ण सिंह को वह मानसिक शांति दी, जिसकी उन्हें तलाश थी।

अमर विरासत

नवंबर 1912 में, 80 वर्ष की आयु में पूर्ण सिंह नेगी ने इस संसार को अलविदा कहा। लेकिन उनकी आत्मा आज भी डी.ए.वी. कॉलेज के प्रांगण में बसी है। उनकी मूर्ति, जो कॉलेज परिसर में स्थापित है, उनकी स्मृति को जीवंत रखती है। प्रत्येक छात्र, जो डी.ए.वी. के द्वार से शिक्षा प्राप्त करता है, पूर्ण सिंह के सपनों का हिस्सा बनता है। उनकी बनाई पीली कोठी भले ही समय के साथ बदल गई हो, लेकिन उसका ऐतिहासिक महत्व और पूर्ण सिंह की दानशीलता की कहानी आज भी हर दिल में गूँजती है।

उनके प्रपौत्र, श्री सुरेंद्र सिंह नेगी, ने देहरादून में एक सफल वकील के रूप में उनकी परंपरा को आगे बढ़ाया। लेकिन पूर्ण सिंह की असली विरासत है वह शिक्षा, जो हजारों बच्चों के जीवन को रोशन कर रही है। डी.ए.वी. कॉलेज आज देहरादून का एक प्रमुख शैक्षिक केंद्र है, और इसकी नींव में पूर्ण सिंह नेगी की उदारता और दूरदर्शिता है।

डीएवी कॉलेज, देहरादून एक समय में उच्च शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र था, जो पूरे उत्तराखंड, पर्वतीय क्षेत्र और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए शैक्षिक गौरव का प्रतीक था। उस दौर में यहाँ पढ़ने के लिए दूर-दराज से छात्र आते थे। कॉलेज की छात्र संख्या 20,000 से 30,000 के बीच हुआ करती थी। आजादी के बाद इस कॉलेज ने उन लोगों को शिक्षा प्रदान की, जिन्होंने भारतीय राजनीति, प्रशासन और समाज में महत्वपूर्ण योगदान दिया। यहाँ से पढ़े हुए कई छात्र केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री, केंद्रीय सचिव, आईएएस, आईपीएस, आईआरएस, डीजीपी, वैज्ञानिक, प्रसिद्ध डॉक्टर और साहित्यकार , प्रसिद्ध पर्वतारोही बने। इस कॉलेज ने न केवल शिक्षा का प्रसार किया, बल्कि देश के विकास में भी उल्लेखनीय भूमिका निभाई।

एक प्रेरणा, जो अमर है

पूर्ण सिंह नेगी का जीवन हमें सिखाता है कि सच्ची संपत्ति वह नहीं, जो हम अपने लिए संचय करते हैं, बल्कि वह है, जो हम समाज के कल्याण के लिए समर्पित करते हैं। उनका जीवन एक दीपक की तरह है, जो स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देता है। उन्होंने दिखाया कि धन और वैभव का सही उपयोग समाज के उत्थान में किया जा सकता है। उनकी दानशीलता केवल संपत्ति का दान नहीं थी; यह एक विचार था, एक संकल्प था, जो शिक्षा के माध्यम से समाज को सशक्त बनाने का था।

आज, जब हम डी.ए.वी. कॉलेज की प्रगति को देखते हैं, तो पूर्ण सिंह नेगी की आत्मा को नमन करना स्वाभाविक हो जाता है। वे एक जमींदार थे, एक उद्यमी थे, लेकिन सबसे बढ़कर, वे एक दानवीर थे, जिन्होंने अपने जीवन को शिक्षा और समाजसेवा के लिए समर्पित कर दिया। उनकी गाथा हमें प्रेरित करती है कि हम भी अपने जीवन में कुछ ऐसा करें, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बने। पूर्ण सिंह नेगी का नाम देहरादून की धरती पर हमेशा अमर रहेगा, जैसे एक तारा, जो रात के अंधेरे में भी चमकता रहता है।

पूर्ण सिंह नेगी का जीवन एक ऐसी कथा है, जो हमें बताती है कि सच्चा अमरत्व धन या वैभव में नहीं, बल्कि समाज के लिए किए गए कार्यों में निहित है। उनकी दानशीलता ने देहरादून को एक शैक्षिक केंद्र के रूप में स्थापित किया और शिक्षा के क्षेत्र में एक नई क्रांति का सूत्रपात किया। उनका जीवन हमें यह संदेश देता है कि उदारता और परोपकार ही वह शक्ति है, जो समाज को बदल सकती है। पूर्ण सिंह नेगी—एक नाम, एक प्रेरणा, और एक अमर विरासत, जो देहरादून के इतिहास में हमेशा गूँजती रहेगी।

शीशपाल गुसाईं

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

spot_img

STAY CONNECTED

123FansLike
234FollowersFollow
0SubscribersSubscribe

Latest News