Saturday, December 7, 2024
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बचपन के खेल: बाघ-बकरी, चोर-सिपाही और सांप-सीढ़ी ” : चन्दन घुघत्याल

हमारे बचपन के दिन किसी खजाने से कम नहीं थे। उन दिनों हम बाघ -बकरी, चोर-सिपाही और सांप-सीढ़ी के खेल बड़े ही मनोयोग से खेलते थे। इन खेलों को खेलने का उद्देश्य केवल मनोरंजन होता था। जीतने की चाह, हमें दूसरों से अधिक निपुण महसूस कराती थी, लेकिन इन खेलों के गहरे अर्थों को जानने की कभी आवश्यकता नहीं समझी। इन खेलों से हम सभी अपने दोस्तों से जुड़े रहते थे क्योंकि यह खेल समूह में ही खेले जाते थे | बचपन की यादों में सांप-सीढ़ी का बोर्ड गेम खास जगह रखता है। यह खेल इतना लोकप्रिय हो गया था कि हम इसे दोस्तों के जन्मदिन में तोहफे में भी देने लग गए थे । उद्देश्य था बच्चों को व्यस्त रखना। आज के इस तकनीकी युग में शतरंज और सांप-सीढ़ी जैसे बोर्ड गेम अब ऑनलाइन भी खेले जाने लगे हैं।
आज बच्चों के मन में इन खेलों के बारे में कई सवाल उठते हैं। ऐसा ही एक सवाल मेरे भतीजे अनंत ने सांप-सीढ़ी खेलते हुए पूछा। उसने पूछा, “इस खेल में सांप ही क्यों लिया गया है? सीढ़ी की जगह उड़न तश्तरी भी तो हो सकती है?” उसने यह भी पूछा, “किसी भी सांप-सीढ़ी खेल में जीतने तक कम से कम कितनी बार पासा फेंकना पड़ता है?” “यह खेल कहां से आया और इसका क्या उद्देश्य था?” अनंत के इन सवालों ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया।
सांप-सीढ़ी का खेल भारत का प्राचीन खेल है, जिसे ‘मोक्षपट्ट या ‘लीला’ या ‘परमपद सोपानम्’ कहा जाता था। इसका उद्देश्य धार्मिक और नैतिक शिक्षा देना था। सांप बुराई और विकारों का प्रतीक होते थे जबकि सीढ़ी अच्छे कार्यों और गुणों का प्रतीक होती थी। यह खेल जीवन की वास्तविकताओं को दर्शाने के लिए बनाया गया था, जहां अच्छाई हमें ऊपर ले जाती है और बुराई नीचे गिरा देती है। इस खेल को बारीकी से देखने पर मुझे चावल देखकर भविष्य बताने वाले गणतुवे की याद आई। जिस तरह गणतुवे चावल के दानों से व्यक्ति के परिवार के बारे में बताते हैं, उसी तरह हजारों साल पहले सांप-सीढ़ी के खेल द्वारा सीढ़ी और सांप के आधार पर पुण्य और पाप के बारे में शायद बताया जाता होगा । यह खेल उन दिनों नैतिक शिक्षा के पैमाने का यन्त्र जैसा रहा होगा । हमें अपने इस सांस्कृतिक और ज्ञानवर्धक विरासत पर गर्व होना चाहिए।
प्राचीन भारत में ‘मोक्षपट्ट’ और ‘लीला’ नाम से प्रसिद्ध यह खेल इंग्लैंड पहुंचकर ‘स्नेक ऐंड लैडर’ बन गया। मिल्टन ब्रेडले ने इसे अमेरिका में ‘शूट ऐंड लैडर’ नाम से प्रस्तुत किया। यह खेल नैतिकता, मानव स्वभाव और जीवन दर्शन की व्याख्या करता है। सांप गुस्सैल स्वभाव का प्रतीक था तो सीढ़ी शांत स्वभाव का। इस खेल में रोमांच और निराशा दोनों जुड़े हैं। 98 अंक पर पहुंचकर नीचे गिरना और फिर ऊपर चढ़ना जीवन के संघर्षों को दर्शाता है। इस खेल से हम धैर्य, नैतिकता और जीवन की अनिश्चितताओं का सामना करना सीखते हैं।
सांप-सीढ़ी का खेल बच्चों के गणितीय कौशल को भी पैनी धार दे सकता है। इस खेल के माध्यम से बच्चे जोड़, घटाना, गुणा और भाग जैसे मौलिक गणितीय संचालन को रोचक और प्रभावी तरीके से सीख सकते हैं। जब बच्चा पासा फेंकता है और अंक जोड़ता है, तो वह संख्या रेखा पर आगे बढ़ने की प्रक्रिया को समझता है। इससे उसकी जोड़ने की क्षमता में सुधार होता है। सांप-सीढ़ी के खेल में पासे के अंक के आधार पर घटाना, गुणा और भाग को भी शामिल किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, अगर पासे में 6 आया और किसी खिलाड़ी को सांप के कारण 3 घर पीछे जाना पड़ता है, तो बच्चा 6 में से 3 घटाकर 3 तक पहुंचता है। इसी प्रकार, खेल में अंकगणितीय समस्याओं को शामिल कर बच्चों को गुणा और भाग सिखाया जा सकता है।
इंटीजर (पूर्णांक) सिखाने के लिए सांप-सीढ़ी का खेल एक प्रभावी और रोचक उपकरण हो सकता है। एक इंटीजर सांप-सीढ़ी बोर्ड बनाने के लिए बोर्ड के बीच में 0 को लिखकर एक केंद्रीय पंक्ति बनाएं, 0 के ऊपर की पंक्तियों में धनात्मक संख्याएं (1, 2, 3, आदि) और 0 के नीचे की पंक्तियों में ऋणात्मक संख्याएं (-1, -2, -3, आदि) लिखें। दो पासों का उपयोग करें: एक पासा धनात्मक संख्याओं (1 से 6) और दूसरा ऋणात्मक संख्याओं (-1 से -6) को प्रदर्शित करेगा। खेल की शुरुआत 0 से करें और खिलाड़ी पासा फेंककर अपने स्थान को संबंधित संख्या से बदलेगा। सांप और सीढ़ी बोर्ड पर रखें: सीढ़ी धनात्मक दिशा में बढ़ने में मदद करेगी जबकि सांप नकारात्मक दिशा में पीछे ले जाएगा। खेल का उद्देश्य धनात्मक और ऋणात्मक इंटीजर की अवधारणा को समझाना है।
अनंत के प्रश्नों ने मुझे एहसास कराया कि हमारा देश कितना महान है। शतरंज जैसा कुशल खेल हमने 600 ईस्वी से पहले खोजा। सांप-सीढ़ी का खेल भी ईसा से 2 शताब्दी पहले भारतीयों ने ही खोजा था। सचमुच, हमारा देश जगत गुरु था। शून्य का आविष्कार हमने किया और भी अनेक गणितीय ज्ञान से संसार को अवगत कराया। हमें गर्व होता है जब हम अपने बुजुर्गों को मौखिक गणना करते हुए देखते हैं। हमारे आज के कई बच्चे वैदिक गणित के ट्रिक्स और अबैकस की ट्रिक का उपयोग कर गणना करते हैं। हमें इन ट्रिक्स और कैलकुलेशन मेथड्स को और लोकप्रिय बनाना है। इसे खेलते समय बच्चे न केवल आनंद लेते हैं, बल्कि उनके गणितीय कौशल में भी सुधार होता है।
बाघ -बकरी का खेल बच्चों को रणनीति बनाने, समस्या समाधान, धैर्य, ध्यान, समन्वय, और टीमवर्क जैसी महत्वपूर्ण कौशल सिखाता है। इस खेल में बाघ (शिकारी) को बकरी (शिकार) को पकड़ने की योजना बनानी होती है, जबकि बकरी को बचने के लिए चालाकी से कदम उठाने होते हैं। इससे बच्चों में रणनीतिक सोच, धैर्य और ध्यान का विकास होता है। समूह में खेलते समय तालमेल और टीमवर्क की महत्ता समझ आती है। इसके अलावा, बकरी को बचाने के लिए रचनात्मकता और नवीनता का इस्तेमाल करना पड़ता है, जिससे उनकी रचनात्मक सोच विकसित होती है। बाग-बकरी का खेल बच्चों के मानसिक और भावनात्मक विकास में सहायक सिद्ध होता है, जिससे वे जीवन के महत्वपूर्ण पाठ भी सीखते हैं।
चोर-सिपाही का खेल चार बच्चों द्वारा खेला जाता है। इस खेल में चार पर्चियों पर ‘राजा’, ‘मंत्री’, ‘चोर’ और ‘सिपाही’ लिखकर उन्हें मोड़ा जाता है। बच्चे इन पर्चियों को उठाकर देखते हैं। ‘राजा’ पर्ची वाला बच्चा बोलता है, “मैं राजा, मंत्री कौन?” ‘मंत्री’ पर्ची वाला बच्चा दो अन्य बच्चों के हाव-भाव देखकर ‘चोर’ का पता लगाता है। सही ‘चोर’ बताने पर मंत्री को 100 अंक मिलते हैं, अन्यथा 0 अंक। इस प्रकार यह खेल कई बार दोहराया जाता है और सबसे ज्यादा अंक पाने वाला बच्चा विजयी होता है। कौशल का विकास होता है क्योंकि मंत्री हाव-भाव देखकर सही अनुमान लगाता है। बच्चे तुरंत जोड़ना भी सीखते हैं। इस खेल को और अधिक रचनात्मक तरीके से भी खेला जा सकता है, जिससे बच्चों का समग्र विकास होता है।
बाघ बकरी और चोर सिपाही जैसे खेल बचपन के दिनों में हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा थे। बाघ बकरी खेल में हम जमीन में एक नुकीले पत्थर से ड्राइंग बनाकर छोटे छोटे पत्थरों को बकरी और एक थोड़ा बड़े पत्थर को बाग बनाकर खेलते थे। इससे हमारी ज्यामितीय और कलात्मक कौशल का विकास होता था | चोर सिपाही खेल में जब भी हमें खाली समय मिलता, हम पर्चियाँ बनाकर खेलते थे। हममें जीतने की होड़ सी लगती थी और इससे हमारे आपसी संबंध भी मजबूत होते थे। ऐसे खेल हमारे जीवन में एक संवाद का माध्यम भी बनते थे, जिससे हमें आपसी वार्ता करने और समझने की क्षमता मिलती थी।
: चन्दन घुघत्याल

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