उत्तराखंड की पत्रकारिता के एक सशक्त हस्ताक्षर, दैनिक जागरण राज्य ब्यूरो चीफ विकास धूलिया जी आज हम सबको अलविदा कह गए। धूलिया जी, जिनकी लेखनी ने न केवल समाचारों को जीवंत किया, बल्कि समाज की नब्ज को भी थामा, मात्र 56 वर्ष की आयु में इस दुनिया से चुपचाप रुखसत हो गए। उनका अचानक चले जाना न सिर्फ पत्रकारिता जगत के लिए, बल्कि उत्तराखंड की सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना के लिए एक ऐसी क्षति है, जिसकी पूर्ति शायद ही संभव हो। कोटद्वार के इस माटी के लाल ने अपनी सादगी, ईमानदारी और निष्ठा से पत्रकारिता को एक नई दिशा दी, और आज उनके जाने से हर दिल में एक खालीपन और आंखों में नमी छोड़ गया है। दैनिक जागरण में उनकी कॉलम “सत्ता की गलियारों से” सत्य और संवेदना का सेतु थी।
26 वर्षों से अधिक समय तक दैनिक जागरण, देहरादून में ब्यूरो चीफ और ब्यूरो रिपोर्टिंग की कमान संभालने वाले विकास जी को कल शाम ऑफिस में हल्की अस्वस्थता महसूस होने पर जल्दी घर लौटे, शायद यह सोचकर कि थोड़ा आराम उनकी सेहत को दुरुस्त कर देगा। मगर नियति को कुछ और ही मंजूर था। रात में तबीयत बिगड़ने पर उन्हें पास के महंत इंद्रेश अस्पताल में भर्ती किया गया। रात करीब 1:30 बजे उन्हें उल्टियां हुईं, और सुबह 8:00 बजे, एक और उल्टी के बाद, वह उस नींद में सो गए, जहां से कोई लौटकर नहीं आता।
विकास धूलिया का जीवन सादगी का एक जीवंत उदाहरण था। देहरादून में किराए के मकान में रहने वाले इस पत्रकार ने कभी भौतिक सुखों की चाह नहीं की। उनका स्कूटर, जिस पर वह प्रेस क्लब या ऑफिस आया-जाया करते थे, उनकी सादगी का प्रतीक था। वह उन गिने-चुने लोगों में से थे, जो अपने काम से अपनी पहचान बनाते हैं, न कि दिखावे से। 90 के दशक में कोटद्वार से पत्रकारिता की शुरुआत की। नवभारत टाइम्स कोटद्वार में कुछ समय तक अपनी सेवाएं देने वाले धूलिया जी को मैंने नव भारत टाइम्स में पढ़ा। क्योंकि मैं भी तब टिहरी डेट लाइन से नव भारत टाइम्स में प्रतिनिधि था।
वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत ने विकास धूलिया की स्मृति में गहन शोक व्यक्त करते हुए उन्हें एक असाधारण पत्रकार के रूप में याद किया। उन्होंने फोन पर बताया कि , विकास धूलिया न केवल प्रतिभाशाली थे, बल्कि उनकी लेखनी में गहन तार्किकता और गंभीरता का अनुपम समन्वय था। जयसिंह रावत ने स्मरण किया कि जब विकास ने पत्रकारिता में स्नातक की उपाधि प्राप्त की, तब उन्होंने स्वयं उनकी प्रतिभा को पहचानते हुए उन्हें प्रशिक्षण प्रदान करने में मार्गदर्शन किया।
उन्होंने भावुक स्वर में कहा कि विकास को उन्होंने सुझाव दिया था कि वे दिल्ली जैसे विशाल मंच पर अपनी क्षमता को आजमाएँ, क्योंकि उनकी लेखनी और विचारों की गहराई उन्हें एक दिन पत्रकारिता के शीर्ष पर ले जाएगी। जयसिंह ने विकास की सौम्यता और संयमित स्वभाव की प्रशंसा करते हुए कहा, “ऐसे विरले ही लोग होते हैं, जो कम बोलते हैं, किंतु जब लिखते हैं, तो उनकी कलम तर्क और संवेदना के साथ सत्य को उद्घाटित करती है। विकास धूलिया ऐसी ही दुर्लभ प्रतिभा के धनी थे।”
उनके निधन से न केवल पत्रकारिता जगत, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी एक शून्य उभर आया है, जिसे भर पाना असंभव-सा प्रतीत होता है। विशेष रूप से कोटद्वार से निकलकर देहरादून में अपनी बड़ी पहचान बनाने वाले वरिष्ठ पत्रकारों—अविकल थपलियाल, जोत्सना, दिनेश कुकरेती, केदार दत्त, विपिन बनियाल —के लिए यह एक व्यक्तिगत क्षति है। उनके लिए विकास धूलिया न केवल एक मार्गदर्शक थे, बल्कि एक ऐसे सहयात्री थे, जिन्होंने पहाड़ की माटी की महक को अपनी लेखनी में जीवंत रखा।
देहरादून में रहते हुए भी उनका मन हमेशा अपने मूल निवास, कोटद्वार की हरी-भरी वादियों और वहाँ की सरल जीवन-शैली में रमा रहता था। उन्होंने कई बार अपने निकटजनों से साझा किया था कि रिटायरमेंट के बाद वे कोटद्वार अपने मूल घर में जाएंगे। देहरादून में अस्थायी घर बनाने से उन्होंने इसलिए इंकार किया, क्योंकि उनकी आत्मा का असली ठिकाना तो पहाड़ों की गोद में बसा था। छुट्टियों में जब वे अपने बच्चों के साथ कोटद्वार लौटते, तो उनकी आँखों में एक अलग चमक दिखती थी—वह चमक, जो अपनी मिट्टी से जुड़ने की खुशी और अपनत्व की गर्माहट से उपजती है।
विकास जी भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, पर उनकी लेखनी और स्मृतियां हमेशा प्रेरणा देंगी। उनकी आत्मा को शांति मिले और उनके परिवार को यह दुख सहने की शक्ति। ॐ शांति।
शीशपाल गुसाईं