18.7 C
Dehradun
Wednesday, March 12, 2025
Google search engine
Homeराज्य समाचारविक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित प्रथम विश्व युद्ध के नायक गब्बर सिंह नेगी:...

विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित प्रथम विश्व युद्ध के नायक गब्बर सिंह नेगी: 110वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि, मूर्तियाँ इंग्लैंड, फ्रांस, भारत में

प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के दौरान भारत के वीर सपूतों ने हर मोर्चे पर देश का गौरव बढ़ाया। उनमें से एक प्रमुख नाम गब्बर सिंह नेगी का है, जिनकी वीरता और संघर्ष ने उन्हें एक अमिट स्थान दिलाया। सोमवार को उनकी 110 वीं पुण्यतिथि थी, और यह एक अवसर है जब हमें उनकी बहादुरी को याद करने के साथ-साथ उनके प्रति अपने सम्मान को पुनः संपन्न करने की आवश्यकता है। गब्बर सिंह नेगी की बहादुरी और अदम्य साहस ने उन्हें केवल भारतीय सेनाओं में नहीं, बल्कि विश्व स्तर पर एक पहचान दिलाई। उनके सम्मान में मूर्तियाँ फ्रांस, इंग्लैंड, और भारत के चम्बा में स्थापित की गई हैं। यह मूर्तियाँ केवल उनकी याद को जिंदा नहीं रखतीं, बल्कि यह दर्शाती हैं कि उनका योगदान एक वैश्विक दृष्टि का हिस्सा है। लैंसडाउन के फौजियों के लिए, वह आज भी एक प्रेरणा स्रोत हैं, और उनकी वीरता की कहानियों को नवीन पीढ़ियाँ सुनती हैं।

हालाँकि, यह चिंताजनक है कि जिस वीरता की गूंज विश्व के अन्य देशों में सुनाई देती है, उसकी गूंज अपने देश में उतनी स्पष्ट नहीं है। इंग्लैंड और फ्रांस में गब्बर सिंह नेगी की मूर्तियों की नियमित देखरेख और साफ-सफाई की जाती है, जो उनके प्रति सम्मान और श्रद्धा को दर्शाता है। परंतु, भारत में उनकी मूर्तियों के रखरखाव में कमी देखी जा रही है। यह एक दिग्भ्रमणा का संकेत है, जो यह दर्शाता है कि हम अपने नायकों को भूलते जा रहे हैं। गब्बर सिंह नेगी की कहानी केवल उनकी वीरता का बखान नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज में उन मूल्यों की प्रतिबिंब है, जिन्होंने हमें एकजुट रखा। हमें याद रखना चाहिए कि यह वीरता केवल युद्ध के मैदान में ही नहीं, बल्कि समाज में भी आवश्यक है। हमें अपनी संस्कृति और इतिहास के प्रति जागरूक रहना चाहिए, और उनके प्रति सम्मान अदा करना चाहिए जिन्होंने हमारे देश की स्वतंत्रता और उसकी रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहूति दी।

39वें गढ़वाल राइफल्स की दूसरी बटालियन में राइफलमैन थे
*************

गब्बर सिंह नेगी एक ऐसे वीर जवान थे जिन्होंने अपने शौर्य और समर्पण से न केवल अपने राज्य उत्तराखंड बल्कि समस्त भारत को गर्व महसूस कराया। वे प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 39वें गढ़वाल राइफल्स की दूसरी बटालियन में राइफलमैन के रूप में सेवा दे रहे थे। उनके साहस और वीरता की मिसाल आज भी लोगों के दिलों में बसी हुई है। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, जब जर्मन सेना ने फ्रांस के न्यूवे चैपल में आक्रमण किया, तब गब्बर सिंह नेगी ने अद्वितीय साहस का परिचय दिया। उन्होंने न केवल अपने साथियों की रक्षा की, बल्कि अपने कर्तव्य को सर्वोपरि रखकर दुश्मन के खिलाफ प्रभावी रूप से लड़ाई लड़ी। 10 मार्च 1915 को वह वीर गति को प्राप्त हो गए। कल सोमवार को उनकी 110 वीं पुण्यतिथि थी।

20 अप्रैल 1915 को भारत सरकार के गजट में गब्बर सिंह नेगी के योगदान और उन्हें ‘विक्टोरिया क्रॉस’ से सम्मानित किए जाने की घोषणा की गई। उनकी इस वीरता के लिए उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा मरणोपरान्त ‘विक्टोरिया क्रॉस’ से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार युद्ध के क्षेत्र में सर्वोच्च सम्मान माना जाता है और इसे केवल उन्हीं व्यक्तियों को दिया जाता है जो असाधारण साहस और निस्वार्थता के साथ अद्वितीय कार्य करते हैं। यह न केवल उनके व्यक्तिगत साहस का प्रमाण है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि उत्तराखंड के वीर सपूतों ने राष्ट्र की रक्षा के लिए हमेशा अग्रणी भूमिका निभाई है। गब्बर सिंह नेगी का जीवन हमें यह सिखाता है कि वास्तविक वीरता केवल लड़ाई के मैदान में ही नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में कर्तव्य परायणता और निस्वार्थता का परिचय देने में है। उनका नाम आज भी प्रेरणा का स्रोत है, और उनकी गाथाएं युवा पीढ़ी को प्रेरित करती रहेंगी। गब्बर सिंह नेगी, उत्तराखंड और पूरे भारत के एक प्रतिष्ठित वीर हैं, जिनके बलिदान को सदैव स्मरण किया जाएगा।

उत्तराखंड टिहरी गढ़वाल जिले के चंबा के पास मज्यूड़ गांव में हुआ जन्म
************
गब्बर सिंह नेगी का जन्म 21 अप्रैल, 1895 को उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले के चंबा के पास मज्यूड़ गांव में एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ने उन्हें बचपन से ही संघर्ष के लिए प्रेरित किया। गब्बर सिंह नेगी का जीवन उस समय का एक उदाहरण है जब देश पर ब्रिटिश शासन का खौफ और स्वतंत्रता की इच्छा ने भारतीय युवाओं को जागरूक किया। बचपन से ही नेगी में देश की सेवा का जज्बा था। उन्होंने अपने जीवन को देश की स्वतंत्रता के मिशन में समर्पित करने का संकल्प लिया। उनकी यह सोच और दृष्टिकोण उन्हें सामान्य युवाओं से भिन्न बनाते थे। यही कारण था कि उन्होंने अक्टूबर 1913 में गढ़वाल रायफल में भर्ती होने का निर्णय लिया। इस निर्णय ने उनके जीवन के पथ को पूरी तरह से बदल दिया। गढ़वाल रायफल में सेवा करते समय, गब्बर सिंह नेगी ने अपने साहस और वीरता से कई महत्वपूर्ण मिशनों में भाग लिया। यह उनकी साहसिकता और देशभक्ति थी जिसने उन्हें अपने साथियों के बीच विशेष स्थान दिलाया। नेगी का जीवन केवल एक सैनिक के रूप में नहीं, बल्कि एक प्रेरक व्यक्तित्व के रूप में भी उभरा, जिसने अपने देश के प्रति निष्ठा और समर्पण का परिचय दिया। ।

“सात समोदर पार च जाण ब्वे…”

************

प्रथम विश्व युद्ध ने समस्त मानवता को हिलाकर रख दिया था। इस युद्ध में न केवल मैदानों पर, बल्कि उत्तराखण्ड पहाड़ी क्षेत्रों में भी अनेक सैनिकों ने वीरता का परिचय दिया। पहाड़ के सपूतों ने, जिन्होंने अपने गाँव-घर और माँ की ममता को छोड़कर, युद्धभूमि की ओर कदम बढ़ाया, वे वास्तव में वीरो के प्रतीक हैं। ऐसे ही एक वीर सिपाही की कहानी हमें एक लोकप्रिय गढ़वाली गीत के माध्यम से सुनाई देती है, जिसे प्रसिद्ध गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने अपनी अद्भुत लय में प्रस्तुत किया। युद्ध के लिए समुद्री जहाज पर सवार होते समय, वह सैनिक अपनी माँ के नाम एक करुण और शौर्य से भरा गीत गाता है। इस गीत में उसकी भावनाएँ, उसकी यादें, और उसकी जिम्मेदारियाँ सब कुछ समाहित हैं। वह अपनी भैंसों और बैलों की याद करता है, जो उसके गाँव के रोजमर्रा की जिंदगी का अभिन्न हिस्सा थे। घर की छत, माँ की ममता, और गाँव के साथी सब उसकी आँखों के सामने आते हैं। इस कठिन समय में, जब वह युद्ध के लिए प्रस्थान कर रहा है, उसे यह एहसास होता है कि उसे केवल अपनी व्यक्तिगत भावनाओं का सामना नहीं करना है, बल्कि अपने देश के प्रति भी एक कर्तव्य निभाना है। वह जानता है कि इस युद्ध में शामिल होना उसकी देशभक्ति का परिचायक है। उसका दिल भले ही घर की यादों में बसा हो, लेकिन उसकी आत्मा देश की सेवा करने के संकल्प में दृढ़ है।

युद्ध की विभीषिका में शामिल होने के चलते, वह सैनिक अपने प्रियजनों और अपने दरवाजे की याद में गुनगुनाता है। “सात समोदर पार च जाण ब्वे…”इस गीत की पंक्तियाँ, जहाँ वह अपनी माँ को संबोधित करते हुए कहता है कि वह भले ही समुद्र पार कर रहा है, लेकिन उसकी पूरी आत्मा अपने गाँव जो उत्तराखंड में है के साथ है। यह केवल एक सैनिक का गीत नहीं, बल्कि एक माँ का पुत्र, एक बेटे का गाँव, और एक देशभक्ति का प्रतीक है।

सात समोदर पार च जाऽऽण ब्वे जाज मा जौंलू कि ना
जिकुड़ी उदास ब्वे जिकुड़ी उदास
लाम मा जाण जरमन फ्रांस
कनुकैकि जौंलू मि जरमन फ्रांऽऽस ब्वे जाज मा जौंलू कि ना.
हंस भोरीक ब्वे औंद उमाळ
घौर मा मेरू दुध्याळ नौन्याळ
कनुकैकि छोड़लू दुध्याळ नौन्याऽऽळ ब्वे जाज मा जौंलू कि ना.
सात समोदर पार…

भैंसि बियांर ब्वे लैंदि च गौड़ी
घर मा च मेरि ब्वे बळदूंकि जोड़ी
कख बटि देखलू ईं बळदूंकि जोऽऽड़ी ब्वे जाज मा जौंलू कि ना.
सात समोदर पार…

रुआँ जसि फांटी ब्वे रुआँ जनि फांटी
डांड्यूंका पार ब्वे ह्यूंचुळि कांठी
कख बटि देखलू ह्यूंचुळि कांऽऽठी ब्वे जाज मा जौंलू कि ना.
सात समोदर पार…

सात भैयोंकि ब्वे सात बुआरी
गौंमा च मेरी सजिली तिबारी
आंख्यूंमा तैरली सजिली तिबाऽऽरी ब्वे जाज मा जौंलू कि ना.
सात समोदर पार…

गौंका सिपाही ब्वे घरबौड़ा ह्वेन
मेरोन ब्वे कख मुखड़ी लुकैन
जिकुड़ी मा मेरा कन घौ करि गैऽऽन ब्वे जाज मा जौंलू कि ना.
सात समोदर पार… साभार गीत लेखक- देवेश जोशी जी ।

आज जब हम गब्बर सिंह नेगी की पुण्यतिथि मना रहे हैं, हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम उनकी वीरता को न केवल याद करेंगे, बल्कि उचित सम्मान भी देंगे। यह न केवल उनके प्रति हमारी जिम्मेदारी है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक उदाहरण स्थापित करने का भी एक अवसर है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि गब्बर सिंह नेगी जैसे नायकों को उनके देश में उतना ही मान और सम्मान मिले जितना कि विदेशों में उन्हें प्राप्त होता है। इस दिशा में कार्य करना हमारे लिए न केवल एक नैतिक दायित्व है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति के प्रति हमारी सच्ची प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है। गब्बर सिंह नेगी की पुण्यतिथि पर, आइए हम सभी मिलकर यह प्रण लें कि हम उनके योगदान को कभी नहीं भूलेंगे।

शीशपाल गुसाईं

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

spot_img
spot_img

STAY CONNECTED

123FansLike
234FollowersFollow
0SubscribersSubscribe

Latest News