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स्टेट्स सिम्बल के आगे भावनाहीन होते रिश्तों के बीच फंसे लोग

एक वक्त की बात है जब समाज में आधुनिकता इस कदर हावी नहीं थी जिस तरह आज के दौर में हावी है। समाज के हर तबके के लोगों में एक अपनत्व था, चाहे वह कार्य के माध्यम से हो या व्यक्तिगत मिलने जुलने के आधार पर। हर किसी के प्रति सम्मान व रिश्तों में संवेदना जीवन्त रहती थी। यदि किसी के साथ कोई समस्या हो तो लोग मिलजुल कर उसकी सहायता करते थे, किसी एक की समस्या पूरे गांव की समस्या होती थी, किन्तु आज जैसे जैसे आधुनिकता हमारे समाज पर हावी होते जा रही है लोगों के भीतर एक दूसरे के प्रति संवेदनायें भी खत्म होने लगी हैं। आज हमारे समाज के भीतर एक बड़ा तबका स्टेट्स सिम्बल की भेंट चढ़ चुका है और आज वह रिश्ते भी उसी आधार पर चुनता है। यह मायने नहीं रखता कि सामने वाला व्यक्ति उसके जीवन में क्या स्थान रखता है, उसने कभी उससे जरूरत होने पर सहायता प्राप्त की या नहीं, उस व्यक्ति के साथ उसने अच्छा वक्त बिताया या नहीं, यह सब आज के समय में व्यर्थ है। आज रिश्तों का मानक इस आधार पर तय होता है कि सामने वाले का स्टेट्स क्या है, क्या वह हमारे स्तर से मैच करता है, क्या वह समाज के भीतर उच्च स्तर पर है तब तो हम उससे खुल कर रिश्ता निभायेंगे अन्यथा दुनिया के सामने न आते हुए रिश्ता निभाने की कोशिश करेंगे। यही आज की सच्चाई बन चुकि है हम देखना भी नहीं चाहते हैं आज कि सामने वाला हमारे प्रति कितना सम्मान रखता है अपने दिल में, किस तरह वह निस्वार्थ रिश्ता निभाने को‌ तत्पर रहता है। फर्क इस बात से पड़ता है कि आज दूसरों को खुश करने के लिए रिश्ते दिखाये व छुपाये जाते हैं, सामने वाले से आपके रिश्ते में भले कोई शिकायत न हो लेकिन दूसरों को खुश करने के लिए वह रिश्ते आज छुपाये जाते हैं या दिखाये जाते हैं जिससे जैसा लाभ हो वह किया जाता है। साथ ही ऐसे में कई बार यह भी देखने को आया है कि हम किसी रिश्ते में सामने वाले के लिए उस स्तर पर भी हर संभव तत्परता के साथ खड़े रहते हैं जब हम स्वयं विपरीत परिस्थिति में हों, रिश्ता निभाने के लिए सामने वाले को यह पता भी नहीं चलने देते कि हम किस परेशानी का सामना कर रहे हैं। यदि हम नाराज़ भी हों बात न भी करना चाहें तो भी रिश्ता बचाने के लिए बात करने से पीछे नहीं हटते किन्तु सामने वाला सामान्य सी बात के पीछे तुरन्त आपसे बात करने से पीछे हट जाएगा, उसको यह जरा सा भी फर्क नहीं होगा कि आपकी भावना को चोट पहुँच सकती है उसके व्यवहार से। वह अपने मूड के आधार पर रिश्ता निभाएगा, वह खुश तब होगा जब उसका मूड होगा वहीं आप तब भी न चाहते हुए खुद को खुश दिखायेंगे जब वह खुश होगा, आप नाराज होने के बाद तब भी बात करने को‌ तैयार होंगे जब तक वह करना चाहेगा। क्योंकि रिश्ता बचाना है आपको, आपके लिए रिश्ता मायने रखता है, स्वयं से पहले रिश्ता है आपके लिए।

आज के दौर में यदि रिश्तों को‌ आधुनिकीकरण की भेंट न चढ़ाया जाए, उसको स्टेट्स सिम्बल के आधार पर या किसी अन्य को‌ खुश करने के लिए न छुपाया जाए और न ही दिखाया जाए, एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान किया जाए और रिश्ता यदि निभाना हो‌ तो स्पष्ट निभाया जाए नहीं तो स्पष्ट वार्ता कर स्वस्थ रूप से रिश्ता खत्म कर लिया जाए ताकि किसी को मानसिक तनाव न झेलना पड़े किसी भी प्रकार के रिश्ते में जोकि आज सबसे ज्यादा देखने को‌ मिल रहा है चाहे वह किसी भी प्रकार का रिश्ता हो सामाज के भीतर।

लेखक पवन दूबे
समाजसेवी, देवभूमि उत्तराखण्ड प्रदेश

यह लेखक के स्वतंत्र विचार हैं।

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