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“राजपूत राणावत मियाँ लोगों को मियांवाला जागीर भी मिली थी, और आरएसएस नेता खुशहाल सिंह राणावत मियाँ का बीजेपी में योगदान भी महत्वपूर्ण रहा है।”

 

देहरादून के मियांवाला जागीर का इतिहास गढ़वाल के राजाओं के शासनकाल से गहराई से जुड़ा हुआ है, जहाँ गुलेरिया समुदाय के साथ-साथ राणावत मियां वंश के लोगों का भी महत्वपूर्ण स्थान रहा है। राणावत, जो मूल रूप से हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा क्षेत्र में स्थित गुलेर रियासत से संबंधित थे, समय के साथ गढ़वाल की ओर प्रवास कर गए और यहीं स्थायी रूप से बस गए। गुलेर (हिमाचल) से अपनी रानी और रिश्तेदारों के साथ आए राणावत, गुलेरिया लोगों के साथ मिलकर गढ़वाल पहुँचे। गढ़वाल में बसने के बाद राणावतों ने न केवल अपनी पहचान बनाए रखी, बल्कि स्थानीय समाज और शासन व्यवस्था में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

मियांवाला जागीर का विशेष उल्लेख इस संदर्भ में आवश्यक है, क्योंकि यह क्षेत्र गुलेरियाओं के साथ राणावत वंश के इतिहास का एक अभिन्न अंग रहा है। ऐसा माना जाता है कि गढ़वाल के राजाओं ने राणावतों के पूर्वजों को उनकी वीरता, निष्ठा या सेवाओं के बदले में यह जागीर प्रदान की थी। यह जागीर न केवल उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक थी, बल्कि उनकी आर्थिक और राजनैतिक शक्ति का भी आधार बनी। राणावतों को “राणावत मियाँ” के नाम से भी जाना जाता है, जो उनके विशिष्ट स्थान और सम्मान को दर्शाता है। गढ़वाल में थोकदार राजपूतों को उच्च जाति का दर्जा प्राप्त था, और राणावत भी इस श्रेणी में शामिल थे। थोकदार शब्द यहाँ उन राजपूत सरदारों को संबोधित करता है, जो स्थानीय स्तर पर भूमि और प्रशासन के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। राणावतों का इतिहास गढ़वाल में उनकी जड़ों को मजबूत करने के साथ-साथ उनकी सामाजिक और राजनैतिक प्रगति का भी द्योतक है।

कौन थे खुशहाल सिंह राणावत मियां हैं ?
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खुशहाल सिंह राणावत मियाँ का जन्म 2 जनवरी 1925 को टिहरी गढ़वाल के पट्टी जुवा के डाबरी ग्राम में एक मध्यवर्गीय कुलीन राजपूत परिवार में हुआ। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा के बाद हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से साहित्यरत्न (हिन्दी एम.ए.) की डिग्री प्राप्त की। उनकी शिक्षा ने उन्हें समाजिक और राजनीतिक कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लेने की प्रेरणा दी। श्री राणावत जी का राजनीतिक यात्रा 1944 में संघ की शाखाओं में जाने से शुरू हुआ। 1970 में, वे मसूरी मंडल जनसंघ के पहले अध्यक्ष बने और 1977 तक इस पद पर रहे। उनके नेतृत्व में जनसंघ ने स्थानीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई। 1977 में जनता पार्टी के गठन के बाद, राणावत ने मसूरी मंडल महामंत्री के रूप में सेवा की, जो उनके संगठनात्मक कौशल और नेतृत्व क्षमता का परिचायक थी।

भारतीय जनता पार्टी के गठन के बाद, राणावत जी ने मसूरी मंडल के अध्यक्ष के रूप में सक्रिय भूमिका निभाई। 1984 से 1986 तक वे उत्तर प्रदेश प्रान्तीय परिषद् के सदस्य रहे, जो उनकी बढ़ती लोकप्रियता और पार्टी के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। 1990 में, उन्हें देहरादून जिला भा.ज.पा. का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया, जहाँ उन्होंने वर्ष 1992 तक अपनी सेवाएँ दीं। 1992 में पुनः बीजेपी के जिलाध्यक्ष चुने गए, 1995 तक जिलाध्यक्ष के रूप में सेवायें दी। फिर गढ़वाल मंडल में अनेक पदों पर रहे।

सामाजिक योगदान
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भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विकास और विस्तार की कहानी में अनेक व्यक्तियों का योगदान शामिल है, जिन्होंने अपने निःस्वार्थ प्रयासों से पार्टी को मजबूती प्रदान की। इनमें से एक प्रमुख नाम है खुशहाल सिंह राणावत, जिनका कार्य न केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक उत्थान और समर्पण की भावना का भी प्रतीक है। उत्तरांचल प्रदेश (वर्तमान उत्तराखंड) में भाजपा के प्रारंभिक दिनों में, जब संगठन अभी अपनी जड़ें जमाने की प्रक्रिया में था, राणावत जैसे व्यक्तियों ने अपनी मेहनत और दूरदर्शिता से इसे एक मजबूत आधार प्रदान किया। उनका जीवन और कार्य हमें यह सिखाता है कि सच्चा नेतृत्व वही है जो व्यक्तिगत स्वार्थों से ऊपर उठकर समाज के कल्याण और प्रगति के लिए समर्पित हो।

खुशहाल सिंह राणावत, जिन्हें प्यार से “मियाँ जी ” के नाम से भी जाना जाता था, एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिनके पूर्वजों की विरासत मियाँवाला जागीर के रूप में प्रसिद्ध थी। यह जागीर उनके परिवार की ऐतिहासिक पहचान का हिस्सा थी, जो देहरादून क्षेत्र में उनकी गहरी जड़ों को दर्शाती है। उस दौर में, जब भाजपा देहरादून जैसे जिलों में मुट्ठी भर कार्यकर्ताओं के साथ अपने पैर जमाने का प्रयास कर रही थी, राणावत ने जिला अध्यक्ष के रूप में लंबे समय तक अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया। यह वह समय था जब संसाधन सीमित थे, संगठनात्मक ढांचा अभी पूरी तरह विकसित नहीं हुआ था, और पार्टी को जन-जन तक पहुंचाने के लिए अथक परिश्रम की आवश्यकता थी। ऐसे कठिन समय में राणावत जी ने न केवल पार्टी के लिए एक मजबूत नींव रखी, बल्कि अपने कार्यों से यह भी दिखाया कि नेतृत्व का असली मोल लोगों के बीच विश्वास और एकता स्थापित करने में है।

उनका योगदान केवल राजनीतिक क्षेत्र तक सीमित नहीं था। सामाजिक स्तर पर भी उन्होंने समाज के कमजोर वर्गों के उत्थान के लिए प्रयास किए, जिससे उनकी छवि एक जनसेवक के रूप में और भी निखर कर सामने आई। उत्तरांचल प्रदेश में भाजपा के इतिहास में उनका अध्याय इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उस समय की कठिनाइयों, संघर्षों और समर्पण की कहानी को बयां करता है, जब पार्टी ने अपने मूल्यों और विचारधारा को जनता तक पहुंचाने की शुरुआत की थी। यह वह दौर था जब हर कार्यकर्ता का योगदान अनमोल था, और राणावत जैसे लोग इसकी प्रेरणा बने। उनकी निःस्वार्थ सेवा और दृढ़ संकल्प ने नई पीढ़ी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए एक मिसाल कायम की, जो आज भी प्रासंगिक होनी चाहिए। लेकिन इतने बड़े दिवंगत भाजपा नेता की समृद्ध विरासत “मियांवाला” आज …..?

शीशपाल गुसाईं

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