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पिथौरागढ़ नन्ही परी प्रकरण में जगी न्याय उम्मीद: सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुई पुनर्विचार याचिका

पिथौरागढ़। हल्द्वानी में घटित हुई नन्ही परी दुष्कर्म एवं हत्या मामले में उत्तराखंड की बेटी को न्याय मिलने की उम्मीद जगी है। उत्तराखंड सरकार ने त्वरित संज्ञान लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय में शनिवार को पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। इस याचिका का प्रारूपण एस.पी. सिटी हल्द्वानी प्रकाश चंद्र आर्या द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया गया है। इस मामले की पैरवी के लिए उत्तराखंड सरकार ने भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को जिम्मेदारी सौंपी है, ताकि सर्वोच्च स्तर पर नन्हीं परी को न्याय मिल सके।

बता दें की वर्ष 2014 में काठगोदाम में पिथौरागढ़ की 7 साल की बच्ची के साथ हुए क्रूर दुष्कर्म एवं हत्या के मामले में एक आरोपी को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी कर दिया था जिस पर उत्तराखंड सरकार ने पुनर्विचार याचिका डालने के लिए अनुरोध किया गया था। उत्तराखंड सरकार के इस कदम पर बच्ची के परिजनों ने संतोष व्यक्त किया है और उन्हें विश्वास है कि नन्हीं परी को न्याय मिलेगा। उन्होंने सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम के लिए आभार व्यक्त किया है।

जिला प्रशासन की ओर से जिलाधिकारी विनोद गोस्वामी ने परिजनों को सरकार की गंभीरता एवं अब तक किए गए प्रयासों से अवगत कराया है। साथ ही उपजिलाधिकारी सदर मंजीत सिंह एवं पुलिस उपाधीक्षक गोविन्द बल्लभ जोशी ने नन्हीं परी के घर जाकर माता-पिता से भेंट की और उन्हें शासन-प्रशासन की ओर से हर संभव सहयोग और समर्थन का भरोसा दिलाया।

वहीं दूसरी और उत्तराखंड सरकार कहना है कि ‘नन्हीं परी’ को न्याय दिलाने में किसी भी स्तर पर कमी नहीं बरती जाएगी। इस मामले को सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखते हुए सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। सरकार का उद्देश्य है कि दोषियों को कड़ी से कड़ी सज़ा मिले और भविष्य में ऐसे अपराधों के खिलाफ एक सशक्त संदेश जाए।

राज्य सरकार ने परिजनों को आश्वस्त किया है कि न्याय की इस लड़ाई में वे अकेले नहीं हैं, बल्कि पूरा उत्तराखंड और देश उनके साथ खड़ा है। प्रशासनिक और कानूनी स्तर पर हर संभव कदम उठाए जाएंगे ताकि अपराधियों को कठोर दंड मिल सके ।

पुनर्विचार याचिका की सुनवाई भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता स्वयं इस मामले की पैरवी करेंगे, ताकि उच्चतम स्तर पर नन्हीं परी को न्याय सुनिश्चित हो सके। उत्तराखंड सरकार का मानना है कि यह केवल एक बच्ची के न्याय का प्रश्न नहीं है, बल्कि पूरे उत्तराखंड की अस्मिता और सुरक्षा का विषय है।

 

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