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Tuesday, October 14, 2025
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नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने निर्वाचन अधिकारियों की भूमिका पर उठाए सवाल: निष्पक्ष चुनाव संपन्न करने के लिए वरिष्ठ निर्वाचन अधिकारियों को सौंपे जिम्मेदारी

चुनाव प्रक्रिया में चुनाव अधिकारियों की भूमिका होती है महत्वपूर्ण: निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव संपन्न करने के लिए वरिष्ठ निर्वाचन अधिकारियों को सौंपनी चाहिए चुनाव की जिम्मेदारी

पंचायत चुनावों के निर्वाचन अधिकारियों व उनके सहायकों को निष्पक्ष होने के साथ होना चाहिए कानूनों का जानकार

उत्तराखण्ड के अधिकांश जिलों से सूचना मिल रही है कि, कामचलाउ व्यवस्था के तहत  निर्वाचन अधिकारियों के महत्वपूर्ण पदों पर बेहद कनिष्ठ अधिकारियों को किया जा रहा तैनात-यशपाल आर्य

चुनावों में निर्वाचन अधिकारियों की भूमिका बहुत बेहद महत्वपूर्ण है। क्योंकि उनके हाथों में त्रिस्तरीय पंचायतों के चुनावों को सम्पन्न करवाने की बागडोर होती है। पंचायतों के चुनाव अधिकांशतः हर तरह से कमजोर पृष्ठ भूमि के वे उम्मीदवार लड़ते हैं जिन्हें बहुत कम कानूनी जानकारी होती है। इसलिए पंचायत चुनावों के निर्वाचन अधिकारियों व उनके सहायकों को निष्पक्ष होने के साथ कानूनों का जानकार होना चाहिए या उन्हें सही उपलब्ध कानूनी सलाह लेनी चाहिए।
उत्तराखण्ड के अधिकांश जिलों से सूचना मिल रही है कि, कामचलाउ व्यवस्था के तहत इन निर्वाचन अधिकारियों के महत्वपूर्ण पदों पर बेहद कनिष्ठ अधिकारियों को तैनात किया जा रहा है। इनमें से अधिकांश का प्रशासनिक प्रशिक्षण भी नहीं हुआ होगा या ये कनिष्ठ अधिकारी सत्ता के दबाव में नियम विरुद्ध निर्णय ले रहे हैं। इसका कुछ उदाहरण निम्न हैं

1 उधम सिंह नगर के ब्लॉक काशीपुर की क्षेत्र पंचायत सीट खरमासी से प्रत्याशी श्रीमती नर्मता पत्नी अभिषेक सिंह का नाम निर्देशन पत्र निरस्त कर दिया गया। प्रत्याशी अनुसूचित जाति की जाटव जाति से थी। निरस्त करने का कारण मायके पक्ष का जाति प्रमाण पत्र बताया गया। जबकि रिटर्निंग अधिकारी सिंचाई विभाग के अधिशाषी अभियंता अजय जॉन ससुराल पक्ष का जाति प्रमाण पत्र मांग रहे थे। सभी जानते हैं कि अनुसूचित जाति की महिलाओं के मामले में मायके के प्रमाण पत्र के आधार पर ही उनकी जाति का निर्धारण होता है । जाटव जाति उत्तराखण्ड में भी अनुसूचित जाति में आती है और अनुसूचित जाति के प्रमाण पत्रों की वैधता की कोई समय सीमा नहीं होती है। याने “जन्म के आधार पर जाति” का प्रमाणीकरण होता है और एक बार जाति अनुसूचित जाति होने के लिए सदा के लिए अनुसूचित जाति ही रहती है। लेकिन इस मामले में रिटर्निंग ऑफिसर ने नियम विरुद्ध निर्णय लिया है।

2 रुद्रप्रयाग जिले में 27 लाख के सरकारी देनदारी जिसकी राजस्व वसूली और वारंट कटे हैं का जिला पंचायत सदस्य के लिए नाम निर्देशन पत्र इस आधार पर स्वीकार कर लिया गया कि मामला उच्च न्यायालय में चल रहा है। जबकि आपत्तिकर्ताओं ने रिटर्निंग ऑफिसर के सामने समस्त दस्तावेज प्रस्तुत करके उन्हें बताया कि इस मामले में प्रत्याशी के दो बार जिलाधिकारी के आदेश पर स्टे मांगने पर भी उच्च न्यायालय ने स्टे नहीं दिया है न प्रत्याशी के पक्ष में निर्णय हुआ है। रिटर्निंग ऑफिसर ने इस मामले में संभवतः जिला शासकीय अधिवक्ता या चुनाव आयोग से भी कोई सलाह नहीं ली।

3 इसी तरह टिहरी जिले के जिला पंचायत के 29 अखोड़ी वार्ड से रिटर्निंग ऑफिसर ने नियम विरुद्ध 7 प्रत्याशियों के नामांकन निरस्त कर दिए।

ये सारे निर्णय शक्तिमान दूसरे प्रत्याशियों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से लिए गए हैं।
इस तरह के उदाहरण राज्य के सभी जिलों से आ रहे हैं। अतः निर्वाचन अधिकारियों को चुनाव के मामले में मिली असीमित शक्तियां का नियमबिरुद्ध प्रयोग करने से रोकना जरूरी है।
इस लिए मेरा सुझाव है कि , निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए उपरोक्त तीनों मामलों सहित निर्वाचन अधिकारियों द्वारा लिए संवेदनशील मामलों या जिन मामले में शिकायत प्राप्त हुई हो उन मामलों की जांच कर इस तरह के निर्वाचन अधिकारियों को निर्वाचन का प्रभार हटा कर वरिष्ठ अधिकारियों को देना सुनिश्चित करें।
मैं यह सुझाव निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव संपन्न कराने के उद्वेश्य से दे रहा हूं आशा है आप अति शीघ्र इस पर निर्णय ले कर मुझे भी ।अवगत कराएंगे।

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