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उत्तराखंड में श्रम कानून को ताक पर रखकर फैक्ट्रियों और उद्योगों में मजदूरों का किया जा रहा है शोषण

उत्तराखण्ड में फैक्ट्रियों और उद्योगों में कार्यरत मजदूरों के साथ गंभीर अन्याय और शोषण किया जा रहा है।
मजदूरों से प्रतिदिन 12 घंटे काम कराया जाता है, जबकि श्रम कानूनों के अनुसार कोई भी मजदूर 8 घंटे से अधिक कार्य करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। श्रम कानूनों के अनुसार मजदूरों को दिन भर में 1 घंटे का विश्राम और सप्ताह में 1 छुट्टी का अधिकार है, लेकिन अधिकांश फैक्ट्रियों में इन नियमों का पालन नहीं हो रहा।
12 घंटे कठिन परिश्रम कराने के बावजूद मजदूरों को केवल ₹400–₹450 प्रतिदिन मजदूरी दी जाती है। महिला मजदूरों की स्थिति और भी दयनीय है, उन्हें तो मात्र ₹200 प्रतिदिन दिए जाते हैं। इतनी महंगाई में इस राशि से मजदूर अपने घर-परिवार का भरण-पोषण नहीं कर पा रहे हैं।
मान्यवर, उपरोक्त कारणों से न केवल श्रम कानूनों का खुला उल्लंघन हो रहा है बल्कि गरीब मजदूरों के साथ अमानवीय व्यवहार है।
अतः श्रमिकों के हित में आपसे निवेदन है कि:
1. फैक्ट्रियों में श्रम कानूनों का सख्ती से पालन कराया जाए।
2. मजदूरों से 8 घंटे से अधिक काम न कराया जाए और उन्हें विश्राम व साप्ताहिक अवकाश का अधिकार दिलाया जाए।
3. मजदूरी दरें बढ़ाकर उन्हें न्यूनतम वेतन अधिनियम के अनुसार न्यायपूर्ण और सम्मानजनक मजदूरी दिलाई जाए।
4. महिला मजदूरों को पुरुष मजदूरों के समान मजदूरी दिलाकर उनके साथ हो रहे भेदभाव को समाप्त किया जाए।
यदि सरकार द्वारा उपरोक्त निर्णयों को जमीन पर उतरा जाता है तो न केवल उत्तराखण्ड के मजदूर वर्ग को न्याय मिलेगा और उनके जीवन स्तर में सुधार होगा।


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