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हेमवती नंदन बहुगुणा की  106वीं जयंती के अवसर पर विशेष

हेमवती नंदन बहुगुणा: भारत के बहु-धार्मिक, बहु-भाषी और बहु-जातीय ताने-बाने में विश्वास रखते थे। कट्टरवाद और क्षेत्रवाद के खिलाफ उनका रुख स्पष्ट था।

हेमवती नंदन बहुगुणा, जिन्हें उत्तराखंड के लोग प्रेम और सम्मान से “हिमालय पुत्र” कहते हैं, भारतीय राजनीति के एक ऐसे सितारे थे, जिनका प्रकाश उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों की संकरी पगडंडियों से लेकर राष्ट्रीय मंच तक फैला। 25 अप्रैल, 1919 को पौड़ी गढ़वाल के बुघाणी गांव में जन्मे इस महान नेता की आज जयंती है, और यह अवसर हमें उनके उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र के लिए 1970 और 1980 के दशकों में किए गए अविस्मरणीय योगदानों को स्मरण करने का है। एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, कुशल प्रशासक, प्रखर वक्ता और जननायक के रूप में उनकी पहचान थी, जिन्होंने पर्वतीय क्षेत्रों की विषम भौगोलिक और सामाजिक परिस्थितियों को समझते हुए विकास की एक नई राह दिखाई। उनकी दूरदृष्टि और समर्पण ने उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों को आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक रूप से सशक्त बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

पर्वतीय विकास परिषद का गठन: पर्वतांचल की प्रगति का आधार

1970 और 1980 के दशक में हेमवती नंदन बहुगुणा ने पर्वतीय क्षेत्रों के विकास को प्राथमिकता देते हुए कई योजनाओं की नींव रखी। इनमें सबसे उल्लेखनीय है पर्वतीय विकास परिषद का गठन। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने पर्वतीय क्षेत्रों की भौगोलिक चुनौतियों और आर्थिक पिछड़ेपन को पहचाना। इस परिषद के माध्यम से उन्होंने सड़क निर्माण, स्वास्थ्य सेवाओं, और शिक्षा के क्षेत्र में विशेष योजनाएँ लागू कीं। पर्वतीय विकास परिषद ने उत्तराखंड के दुर्गम गाँवों तक बुनियादी सुविधाएँ पहुँचाने का कार्य किया, जिससे पर्वतवासियों का जीवन स्तर ऊँचा उठा। यह परिषद आज भी उनके दूरदर्शी नेतृत्व की एक जीवंत मिसाल है, जिसने पर्वतीय क्षेत्रों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ा।

उन्होंने इंदिरा गांधी को चेतावनी दी थी कि “आप शेर की सवारी कर रही हैं, उतर जाइए वरना शेर आपको खा जाएगा

हेमवती नंदन बहुगुणा ने दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया
प्रथम कार्यकाल (8 नवंबर 1973 – 4 मार्च 1974): यह उनका पहला और संक्षिप्त कार्यकाल था। इस दौरान उन्होंने प्रशासनिक सुधारों और विकास योजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया। द्वितीय कार्यकाल (5 मार्च 1974 – 29 नवंबर 1975): यह उनका दूसरा और अधिक प्रभावशाली कार्यकाल था। इस दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए, उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा और बुनियादी ढांचे के विकास पर जोर दिया। उन्होंने स्कूलों और अस्पतालों के निर्माण को प्राथमिकता दी। 1975 में आपातकाल लागू होने पर बहुगुणा ने इंदिरा गांधी से असहमति जताई। उनकी बेटी रीता बहुगुणा जोशी के अनुसार, उन्होंने इंदिरा गांधी को चेतावनी दी थी कि “आप शेर की सवारी कर रही हैं, उतर जाइए वरना शेर आपको खा जाएगा।” इस असहमति के कारण उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। उनके कार्यकाल को उत्तर प्रदेश में विकास और प्रशासनिक स्थिरता के लिए याद किया जाता है, हालांकि आपातकाल के दौरान कांग्रेस नेतृत्व के साथ मतभेद उनके करियर का महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।

1977-1979 में जनता पार्टी सरकार में बहुगुणा की नीतियां और योगदान

1977 में जनता पार्टी की सरकार में बहुगुणा ने इस महत्वपूर्ण मंत्रालय का कार्यभार संभाला। इस दौरान उन्होंने ऊर्जा और रासायनिक उद्योगों के विकास के लिए नीतियां बनाईं। पेट्रोलियम क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और उर्वरक उत्पादन में वृद्धि उनके कार्यकाल के प्रमुख लक्ष्य थे। उनकी नीतियों ने कृषि क्षेत्र को मजबूत करने में मदद की, क्योंकि उर्वरकों की उपलब्धता किसानों के लिए महत्वपूर्ण थी। 1979 में चौधरी चरण सिंह की सरकार में बहुगुणा ने केंद्रीय वित्त मंत्री का पद संभाला। यह उनके करियर का एक महत्वपूर्ण पड़ाव था। इस अल्पकालिक कार्यकाल में उन्होंने आर्थिक स्थिरता और ग्रामीण विकास के लिए नीतियों पर जोर दिया। हालांकि, सरकार की अल्पकालिक प्रकृति के कारण उनकी नीतियों का पूर्ण कार्यान्वयन सीमित रहा। उनकी वित्तीय नीतियां गांधीवादी सिद्धांतों और ग्रामीण भारत की जरूरतों पर आधारित थीं, जो उनकी सामाजिक समावेशिता की सोच को दर्शाती हैं।

हेमवती नंदन बहुगुणा: स्वतंत्रता सेनानी, समाजवादी और उत्तराखंड के विकास पुरुष

बहुगुणा ने 1939-40 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की। उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा जेल में डाला गया और 10,000 रुपये का इनाम घोषित किया गया। उत्तराखंड के गढ़वाल के मूल निवासी होने के नाते, बहुगुणा ने पहाड़ी क्षेत्रों के विकास के लिए विशेष प्रयास किए। उन्होंने पर्वतीय विकास मंत्रालय की स्थापना में भूमिका निभाई, जिसने हिमालयी क्षेत्रों के लिए विशेष योजनाएं शुरू कीं। बहुगुणा को “कांग्रेस का चाणक्य” कहा जाता था, क्योंकि उनकी संगठनात्मक क्षमता और जोड़-तोड़ की राजनीति में महारत थी। जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी उनकी क्षमताओं के प्रशंसक थे। 1984 में अमिताभ बच्चन से इलाहाबाद लोकसभा चुनाव हारने के बाद, बहुगुणा ने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया और सामाजिक कार्यों में जुट गए। उन्होंने उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कार्यों को बढ़ावा दिया। बहुगुणा का प्रशासन गांधीवादी सिद्धांतों और नेहरूवादी समाजवाद से प्रेरित था। उनकी सादगी और जनता के प्रति समर्पण उनकी बेटी रीता बहुगुणा जोशी के संस्मरणों में उजागर होता है, जहां उन्होंने बताया कि वह सत्ता में रहते हुए भी साधारण जीवन जीते थे और कोई संपत्ति नहीं छोड़ी। आपातकाल और कांग्रेस से मतभेद के बाद बहुगुणा ने जनता दल और भारतीय लोक दल जैसे दलों के साथ काम किया। यह उनकी राजनीतिक लचीलापन और अनुकूलनशीलता को दर्शाता है। उनकी विरासत का सबसे बड़ा प्रतीक हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय है, जो 1973 में स्थापित हुआ और 2009 में केंद्रीय विश्वविद्यालय बना। यह विश्वविद्यालय उत्तराखंड के शैक्षिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। बहुगुणा लोकतांत्रिक संस्थानों की स्वायत्तता और स्वच्छ प्रशासन के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता और कुलपतियों की गरिमा बनाए रखने पर विशेष ध्यान दिया। वे भारत के बहु-धार्मिक, बहु-भाषी और बहु-जातीय ताने-बाने में विश्वास रखते थे। कट्टरवाद और क्षेत्रवाद के खिलाफ उनका रुख स्पष्ट था।

हेमवती नंदन बहुगुणा: जीवन और विरासत

बहुगुणा जी का पहला विवाह धनेश्वरी देवी से हुआ, जो उनके पैतृक गांव बुघाणी में रहती थीं। दूसरा विवाह 1946 में कमला त्रिपाठी से हुआ, जो एक राजनीतिक रूप से सक्रिय महिला थीं और बाद में फूलपुर से सांसद बनीं। कमला बहुगुणा से उनके तीन बच्चे हैं। विजय बहुगुणा: उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व न्यायाधीश। रीता बहुगुणा जोशी: उत्तर प्रदेश की वरिष्ठ राजनीतिज्ञ, पूर्व कांग्रेस नेता और वर्तमान में भाजपा में सक्रिय। शेखर बहुगुणा: कम सक्रिय राजनीतिक जीवन। वर्तमान में उनका पोता सौरभ बहुगुणा उत्तराखण्ड बीजेपी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। हेमवती नंदन बहुगुणा जी की 17 मार्च 1989 को हृदय की बाईपास सर्जरी के दौरान अमेरिका के क्लीवलैंड अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई। सर्जरी के बाद जटिलताओं के कारण उनका निधन हुआ।

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बहुगुणा जी की 106 वीं जयंती पर आज लख़नऊ में यूपी के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ , देहरादून में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने उनके चित्र/ मूर्ति पर पुष्पांजलि अर्पित की।

संदर्भ:
– हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय की आधिकारिक वेबसाइट
– प्रो. रीता बहुगुणा जोशी और डॉ. राम नरेश त्रिपाठी द्वारा लिखित पुस्तक “हेमवती नंदन बहुगुणा: भारतीय चेतना के संवाहक”
– विभिन्न समाचार पत्र , लेख , और वेबसाइट्स।

 

शीशपाल गुसाईं

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