20.2 C
Dehradun
Wednesday, October 15, 2025
Google search engine
Homeराज्य समाचारहरियाणा : एक आईपीएस अधिकारी की आत्महत्या की आग में जलता राज्य

हरियाणा : एक आईपीएस अधिकारी की आत्महत्या की आग में जलता राज्य

जो राज्य, जो कभी शौर्य का प्रतीक था—महाभारत के कुरुक्षेत्र से लेकर आधुनिक खेल स्टेडियमों तक—अब सत्ता के कुचक्रों में उलझा है

हरियाणा की धरती, जो कभी सरस्वती की धारा से सिंची हुई थी, जहां हवा में घोड़ों की टापों की गूंज और खेतों में फसल लहराती थी, आज एक गहरी उदासी की परत में लिपटी खड़ी है। यह धरती, जो बलिदान की मिट्टी से बनी है, जहां हर कण में स्वतंत्रता की सांस बसी है, आज एक IPS अधिकारी की आत्महत्या के साये में सिसक रही है। वाई. पूरन कुमार, एक 2001 बैच के बहादुर अधिकारी, जिनकी वर्दी में हरियाणा की गरिमा बसी थी, 7 अक्टूबर 2025 को चंडीगढ़ के अपने आवास पर खुद को गोली मार ली। आठ पृष्ठों का वह पत्र, जो उनकी अंतिम सांसों में लिखा गया, न केवल एक व्यक्तिगत दर्द की कहानी है, बल्कि पूरे राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था की सड़न को उजागर करता है। जातिगत भेदभाव, मानसिक उत्पीड़न, अपमान—ये शब्द अब हरियाणा के हर कोने में गूंज रहे हैं। और इस त्रासदी के बीच, उनकी पत्नी अमनीत पी. कुमार, एक IAS अधिकारी स्वयं, ने अंततः पोस्टमार्टम की अनुमति दे दी है। लेकिन यह अनुमति केवल एक कदम है, एक दरार से टपकते पानी की तरह, जो पूरे बांध को ढहाने का संकेत देती है।

कल्पना कीजिए उस रात को: चंडीगढ़ के सेक्टर 24 का शांत आवास, जहां दीवारें पुरानी यादों से सजी हैं। पूरन कुमार, रोहतक के सनरिया पुलिस ट्रेनिंग सेंटर के IG, अपनी मेज पर बैठे हैं। उनके हाथ में कलम कांप रही है। आठ पृष्ठ—कागजों पर खून से सने शब्द। हरियाणा के DGP सत्रुजीत कपूर और पूर्व रोहतक SP नरेंद्र बिजरनिया के नाम प्रमुख हैं। “जातिगत भेदभाव, मानसिक उत्पीड़न, सार्वजनिक अपमान”—ये आरोप केवल शब्द नहीं, बल्कि एक सिस्टम की कैंसर जैसी बीमारी के लक्षण हैं। कुमार की पत्नी अमनीत ने इसे “आत्महत्या के ट्रिगर पॉइंट्स” कहा है। सात दिनों तक शव का पोस्टमार्टम रुका रहा, क्योंकि परिवार ने मांग की—अपराधियों को गिरफ्तार करो। चंडीगढ़ कोर्ट ने 14 अक्टूबर को नोटिस जारी किया, और 15 को अमनीत ने सहमति दी। UT पुलिस के आश्वासन पर: निष्पक्ष जांच, वीडियोग्राफी, मजिस्ट्रेट की निगरानी। लेकिन क्या यह आश्वासन पर्याप्त है? या यह केवल एक औपचारिकता है, जो सत्ता के गलियारों में गूंजती आवाजों को दबाने का माध्यम बनेगी?

हरियाणा की राजनीति, जो कभी जाट-गैर जाट के ध्रुवीकरण पर टिकी थी, आज एक नए संकट के चक्रव्यूह में फंसी है। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, मार्च 2024 में मनोहर लाल खट्टर की जगह आए, एक OBC चेहरा जो BJP की सामाजिक इंजीनियरिंग का प्रतीक था। सैनी ने अक्टूबर 2024 के विधानसभा चुनावों में BJP को तीसरी बार सत्ता दिलाई, 48 सीटों के साथ। लेकिन क्या सैनी वास्तव में कमान संभाल रहे हैं? या यह केवल एक मुखौटा है? खट्टर, अब केंद्रीय ऊर्जा मंत्री और शहरी विकास मंत्रालय के दायरे में, हरियाणा की डोर को पीछे से खींच रहे हैं। सोशल मीडिया पर गूंजती आवाजें कहती हैं: “सत्ता की डोर अभी भी खट्टर के हाथों में है।” दिग्विजय चौटाला जैसे विपक्षी नेता इसे “खट्टर लॉबी का राज” कहते हैं। एक मीटिंग में सैनी की आवाज दबा दी गई, रामदास आठवले की बात तक नहीं सुनी गई। राजेश खुल्लर जैसे नाम उभरते हैं—एक लॉबी जो DGP कपूर को बचाने की साजिश रच रही है। सैनी, जो कभी खट्टर के करीबी थे, अब एक कठपुतली प्रतीत होते हैं। उनकी उदासी इस केस में साफ झलकती है—कुछ कर नहीं सकीं, केवल आश्वासन दे सकीं।

यह घटना केवल एक IPS अधिकारी की मौत नहीं है; यह हरियाणा के प्रशासनिक ताने-बाने का आईना है। पूरन कुमार की मौत के बाद एक और ASI संदीप कुमार की आत्महत्या ने आग में घी डाल दिया। राहुल गांधी, चिराग पासवान जैसे नेता परिवार से मिले, न्याय की मांग की। विपक्ष चिल्ला रहा है: CBI जांच हो, सुसाइड नोट सार्वजनिक करो। लेकिन सत्ता पक्ष? केवल बयानबाजी। सैनी कहते हैं, “परिवार को न्याय मिलेगा।” लेकिन न्याय का इंतजार कितना लंबा? हरियाणा, जहां किसान आंदोलन की यादें ताजा हैं, जहां बेरोजगारी और अग्निवीर योजना के साये लंबे हैं, आज अपनी ही वर्दी वाले बेटे के दर्द से कांप रहा है। यह राज्य, जो कभी शौर्य का प्रतीक था—महाभारत के कुरुक्षेत्र से लेकर आधुनिक खेल स्टेडियमों तक—अब सत्ता के कुचक्रों में उलझा है। खट्टर का मोह, सैनी की असहायता, और लॉबी का साम्राज्य: यह एक महाकाव्य का दुखद अध्याय बन गया है।

साहित्यिक दृष्टि से देखें तो यह कहानी कबीर की दोहों सी है—जो बाहर के कांटों से नहीं, अंदर की आग से जलाती है। पूरन कुमार का पत्र एक आधुनिक ‘रामचरितमानस’ का शोकगीत है, जहां राम (न्याय) हारते नजर आते हैं, और रावण (सत्ता का अहंकार) जीतता हुआ प्रतीत होता है। अमनीत कुमार, एक IAS योद्धा, अपनी पति की चिता पर खड़ी हैं—न केवल विधवा के रूप में, बल्कि एक विद्रोही के रूप में। उनकी सहमति पोस्टमार्टम के लिए एक बीज है, जो न्याय की फसल उगा सकती है। लेकिन क्या यह बीज मिट्टी में पनपेगा? या सत्ता की छाया में सूख जाएगा?

हरियाणा के लोग, जो खेतों में पसीना बहाते हैं, जो शहरों में सपने संजोते हैं, आज सवाल पूछ रहे हैं। क्या सत्ता सेवा के लिए है या स्वार्थ के लिए? सैनी जी, आपकी कुर्सी पर बैठे हुए, क्या आप पूरण कुमार की आंखों में झांक सकते हैं? खट्टर जी, दिल्ली की ऊंची इमारतों से, क्या हरियाणा की धरती की पुकार सुनाई देती है? यह समय है चिंतन का, परिवर्तन का। अन्यथा, यह क्षत—यह घाव—हरियाणा के हृदय को चीरता रहेगा। एक दिन, शायद, सरस्वती की धारा फिर लौटे, और न्याय की वर्षा हो। तब तक, पूरण कुमार की आत्मा प्रतीक्षा करेगी, और हरियाणा रोएगा—एक अनकही कविता की तरह, जो कभी पूरी न हो।

संदर्भ: द हिंदू, एएनआई, न्यूज18,

ये मेरे व्यक्तिगत विचार हैं। IPS पूरन कुमार को दलित होने के कारण मंदिर में प्रवेश न दिए जाने की घटना ने लेखक को गहराई से आक्रोशित कर दिया। इसी घटना ने मुझे इस विषय पर कलम उठाने को प्रेरित किया, ताकि समाज के सामने सच्चाई का आईना रख सकूं और अन्याय की जड़ों को उजागर कर सकूं। भले ही मेरा कार्यक्षेत्र उत्तराखंड तक सीमित हो—अस्कोट से आराकोट तक फैली पत्रकारिता —और हरियाणा से मेरा कोई प्रत्यक्ष संबंध न हो, फिर भी मानवीय अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाना हर जिम्मेदार नागरिक का कर्तव्य है।

IPS पूरण कुमार ने अपने मार्मिक आत्महत्या नोट में स्पष्ट रूप से लिखा था कि उनके वरिष्ठ अधिकारियों ने उन्हें मंदिर में प्रवेश करने से रोका। यह घटना न केवल व्यक्तिगत अपमान की है, बल्कि जातिगत भेदभाव की गहरी जड़ों को उजागर करती है, जो हमारे समाज को अभी भी विषाक्त कर रही है। ऐसी व्यथा हमें सबको झकझोर देनी चाहिए—क्योंकि यदि एक ईमानदार अधिकारी तक सुरक्षित नहीं, तो आम आदमी का क्या हाल होगा? मैं संकल्पित हूं कि इस सत्य को बार-बार सामने लाऊंगा, ताकि न्याय की मांग बुलंद हो और ऐसा कोई और पूरन कुमार न टूटे।

■ *शीशपाल गुसाईं*

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

STAY CONNECTED

123FansLike
234FollowersFollow
0SubscribersSubscribe

Latest News