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भाजपा राज में विकास-विहीन उत्तराखंड शासनिक-प्रशासनिक जाम में फँस गया है-यशपाल आर्य

 

नेता प्रतिपक्ष श्री यशपाल आर्य,  ने कहा कि उत्तराखंड के महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों पर ट्रैफिक जाम अब एक गंभीर समस्या बन चुका है। नियमित जाम की समस्या एक गंभीर विषय है। इसे दूर करने का सरकार के पास कोई रोड मैप नजर नहीं आ रहा है।

श्री आर्य ने कहा कि नैनीताल कैंची धाम पर गाड़ियों की लंबी जाम रोज देखने को मिल रही है सुबह हो या रात हर दिन जाम की समस्या ने लोग व पर्यटक परेशान हो रहे हैं। वाहनों का दबाव बढ़ने से कैंची में जाम से लोग जूझ रहे हैं। रानीबाग- भीमताल, भीमताल-भवाली, भवाली-कैंची, ज्योलीकोट-भवाली, नैनीताल-भवाली और अल्मोड़ा-कैंची समेत भवाली और कैंची को रामगढ़ से जोड़ने वाली सड़कों पर यातायात का दबाव बढ़ने से कदम कदम पर जाम रहता है। कैंची धाम में बढ़ते श्रद्धालुओं की भीड़ के कारण नैनीताल ही नहीं अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ और बागेश्वर के रास्ते भी प्रभावित हो रहे हैं। यह जाम इन जिलों के लोगों के लिए एक बड़ी समस्या बन गया है।

नेताप्रतिपक्ष ने कहा कि कैंची धाम में लंबा जाम, क्वारब व अन्य क्षेत्रों में सड़के खराब होने से हल्द्वानी से कुमाऊँ के इन पर्यटन स्थलों के सफर का समय दोगुने से भी अधिक हो गया है। जिससे लंबी दूरी तय कर पहुंचने वाले पर्यटक कुमाऊँ की ओर रुख करने से भी कतराने लगे है। हल्द्वानी राष्ट्रीय राजमार्ग में कैंची के पास जाम लगने से अल्मोड़ा, व बागेश्वर व पिथौरागढ़ जिलों का व्यापार सहित आमजन और यात्रियों पर इसका प्रभाव पड़ रहा है। राष्ट्रीय राजमार्ग होने के बाद भी सड़क पर समुचित तरीके से यातायात व्यवस्था संचालित कराने की व्यवस्था नही होने,

घंटों लग रहे जाम से आमयात्रियो और पहाड़ को आने वाले मालवाहको को जाम का सामना करना पड़ता है, जिससे समय से व्यापारियों को सामान नही मिल पाता है। जाम के कारण अल्मोड़ा बागेश्वर ,रानीखेत और हल्द्वानी जैसी बड़ी बाजारों की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है।

 

श्री आर्य ने कहा कि जाम से सबसे ज्यादा परेशान हो रहे हैं बच्चे और बीमार मरीज। सर्वविदित है पहाड़ों के सभी हॉस्पिटल अब हॉस्पिटल कम और रेफर सेंटर ज्यादा हैं। अल्मोड़ा बागेश्वर, रानीखेत पिथौरागढ़ से अधिकतम मरीज हल्द्वानी या मैदानी हॉस्पिटलों को रेफर किये जाते हैं और वहीं मरीज कैंची धाम के जाम में फंसकर जिंदगी मृत्यु के बीच जूझते रहते हैं।ये केवल आवागमन का ही संकट नहीं है बल्कि धुएँ-धूल के कारण इसका सीधा संबंध पर्यावरण प्रदूषण, जन-स्वास्थ्य से भी है। साथ ही इसका आर्थिक संबंध जाम में खड़े-खड़े, पैसों से खरीदे गये बिना बात के फुँकते तेल से जनता की जेब से भी है तथा फालतू की उलझन की वजह से पैदा होनेवाली झुंझलाहट से भी है जिसका सीधा दुष्प्रभाव मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है।

नेताप्रतिपक्ष ने कहा कि हालात खराब होने के बावजूद शासन प्रशासन अभी तक वाहनों की आवाजाही को नियंत्रित करने का कोई और तरीका ढूंढ पाने में असफल है। भाजपा राज में विकास-विहीन उत्तराखंड शासनिक-प्रशासनिक जाम में फँस गया है। सरकार को सिर्फ अस्थायी इंतजाम नहीं, बल्कि दीर्घकालिक योजना बनाने की जरूरत है ।अगर जल्द से जल्द सरकार ने इस विकराल होती समस्या को गंभीरता से नहीं लिया तो भविष्य में होने वाले भयंकर जाम से पहाड़ के निवासियों की हालत बद से बदत्तर न हो जाय।

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