आम आदमी पार्टी की कश्मीर से लेकर गुजरात गोवा तक की विधानसभा सीटों में सफलता इस बात का साफ संकेत है कि देश की जनता स्थापित राजनीतिक दलों की मनमानी से तंग आ चुकी है और कहीं न कहीं देश में एक नए विकल्प की तलाश कर रही है।
इसने इस तथ्य को भी रेखांकित किया है कि सामाजिक आंदोलनों को राजनीतिक परिवर्तन के वाहक के तौर पर देखा जा सकता है और अगर सामाजिक आंदोलनों को निःस्वार्थ एवं ईमानदार नेतृत्व मिले, तो उसे आम लोगों का भरोसा और सहयोग भी मिलता है जैसे आम आदमी पार्टी।
बेशक, सामाजिक आंदोलन करने वाले संगठनों का पहले भी टुकड़े-टुकड़े में प्रयोग हुआ है, लेकिन उनके परिणाम बहुत उत्साहजनक नहीं रहे, क्योंकि मुद्दे व जनसेवा वोटों में तब्दील होते नहीं देखे गए। लेकिन आम आदमी पार्टी ने देश भर के सामाजिक संगठनों के सामने उम्मीद की किरण जगाई है।
इसने यह दिखा दिया है कि सामाजिक संगठन प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बेहतर राजनीतिक परिस्थितियां पैदा करने में एक प्रभावी योगदान दे सकते हैं। खासकर ऐसे समय में, जब प्रदेश के राजनीतिक हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं, विकल्पों की खोज में लगे सामाजिक संगठन व उनके कार्यकर्ता आम आदमी पार्टी को एक जागरूक हथियार बनाकर देश में एक बेहतर विकल्प की महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
आम आदमी पार्टी का उभार प्रदेश की राजनीतिक व्यवस्था के लिए एक सुखद संकेत है। मौजूदा निराशाजनक राजनीतिक परिदृश्य में प्रदेश की जनता व्यापक बदलाव चाहती है। पिछले 24 सालों में हमारी राजनीतिक पार्टियां ऐसा कोई चमत्कार नहीं कर पाईं, जिससे प्रदेश के तमाम लोगों को बुनियादी सुविधाएं भी हासिल हो सकें और चमकते उत्तराखंड की छवि सामने आए। लोगों की आशाएं निराशाओं में बदलती चली गईं। दो पार्टियों के बीच हर चुनाव में बदलाव लाने की कोशिशें कभी कोई बड़ा काम नहीं कर पाईं। हर बार पुराने में नएपन की तलाश या फिर एक से थक और निराश होकर हम फिर पुराने को चुनकर आशाएं बांधते चले गए। हासिल जो कुछ हुआ, वह सब हमारे सामने है।
उत्तराखंड में बड़े राजनीतिक दलों ने जब कुछ दशक पहले जनता का विश्वास खोया और इसी स्थानीय अस्मिताओं से उत्तराखंड प्रदेश बना राज्य गठन के कारण प्रदेश में क्षत्रपों का उदय हुआ, तो लगने लगा जैसे शासन की व्यवस्था अब स्वराज वाली होगी पर प्रदेश के लोगो ने राष्ट्रीय दलों को चुना औऱ इस तरह इन दोनों राष्ट्रीय दलों के आपसी सहयोग से उत्तराखंड के 24 सालों में लूट खसोट का पूरा खेल सबके सामने आया फ़िर उत्तराखंड राज्य में बीजेपी कांग्रेस की घटिया राजनीति ने उत्तराखंड का बेड़ा गर्त करके बड़े पैमाने पर नुकसान ही दिया।
लेकिन दोनों सरकारों के समय समय पर घोटालों पर घोटाले ने उत्तराखंड औऱ यहाँ की राजनीति को और गहरे गड्ढे में धकेल दिया। इन दो बड़े गठबंधनों के बनते-बिगड़ते समीकरणों में जनता की नए तरह से पिसाई शुरू हो गई। और आज स्थापना के 24 वर्षों बाद भी हमारा राजनीतिक भविष्य एक छलावे की तरह दिखता है। बार-बार इस तरह छले जाने के खिलाफ पूरे प्रदेश में आक्रोश है, आक्रोशित लोग राज्यव्यापी राजनीतिक विकल्प की तलाश कर रहें हैं औऱ ये बदलाव आम आदमी पार्टी लाने में सक्षम है।
जनलोकपाल औऱ भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की गर्भ से उपजे सामाजिक कार्यकर्ताओं के ही एक समूह ने “आप” पार्टी की नींव रखी थी और एक बड़ी चुनौती लेकर दिल्ली की जनता के बीच गई। भ्रष्टाचार विरोधी उस आंदोलन को देश भर की जनता का व्यापक समर्थन हासिल था। जनता ने आम आदमी के अधिकारों की वकालत करने वाली इस पार्टी को समर्थन देकर 1947 से पहले स्थापित कांग्रेस बीजेपी को एक चेतावनी दी है कि आम आदमी की उपेक्षा अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी और जनहित से जुड़े मुद्दे राजनीतिक दलों के एजेंड़े में प्राथमिकता में होने चाहिए।
देश में “आप” पार्टी को मिले जनसमर्थन से साफ है कि देश की जनता साफ-सुथरी छवि वाले लोगों को विकल्प के तौर पर चुनना चाहती है, ताकि दुनिया में आम आदमी पार्टी अपनी और देश के हालात को बेहतर रूप में प्रस्तुत कर सके। रोज-रोज का सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक अस्थायीपन उन्हें कचोटता है।
देश की आम आदमी पार्टी, जो जनसेवा के कार्यों से भी जुड़ी हुई है, वे आम लोगों के बीच से ही उभरी हुई है। ये वे लोग हैं, जो देश के ग्रामीण इलाकों के हालात को गहराई से समझने की क्षमता रखते हैं और इन्होंने हमेशा लोगों के मुद्दों और प्राथमिकताओं पर कार्य किया है। समाज के हर पहलू में इनकी जमीनी पकड़ है। चाहे शिक्षा व्यवस्था हो या फिर स्वास्थ्य, या फिर गांवों के आर्थिक उन्नयन की, इन संगठनों ने हमेशा अग्रणी भूमिका निभाई है और समय-समय पर सरकार और राष्ट्रीय योजनाओं को भी दिशा दी है। इसलिए इनकी राजनीति में भागीदारी किस तरह से महत्वपूर्ण है, यही जानने का समय है।
देश के जनसंगठन भले ही आम आदमी पार्टी की तरह राजनीति में सक्रिय भागीदारी न करें, लेकिन स्वच्छ राजनीतिक वातावरण बनाने में सहायक की भूमिका तो निभा ही सकते हैं। देश के जनसंगठनों को अब अच्छी छवि वाले आम लोगों के पक्ष में खड़ा होना होगा और यह जिम्मेदारी भी निभानी होगी कि लोग अपने मतों के महत्व को समझें और मुद्दे को लेकर प्रत्याशियों से जद्दोजहद करें। काम की राजनीति कम से कम राजनीतिक दलों को साधने के कुछ तो काम आ जाएगी।
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि उत्तराखंड में जंगलराज की समस्या या पहाड़ी प्रदेश की चिंता विकल्प की चर्चा को औऱ गंभीर बनाता है
उत्तराखंड में अलग किस्म का माहौल बना हुआ है औऱ पिछले कुछ समय से जल जंगल जमीन खनन माफियाओं और कई तरीकों के मानव तश्करो से त्रस्त है, पहाड़ो पर इंडस्ट्रीयल लॉबी ने ग्रामीणों का सुख चैन सब छीन लिया है आये दिन गांवों के गांव सरकारी आपदा का सामना कर रहें हैं उत्तराखंड व भारत सरकार के इस आवारा विकास ने पहाड़ो के इलाकों में एक डर का माहौल बना दिया है। रोजगार करने वाले नागरिकों का सारा जन जीवन अस्त व्यस्त है। माफियाओं, भ्रष्टाचारियों और उत्तराखंड सरकार का आपस में गठबंधन हो चुका है शायद इसी कारण आम आदमी मौन है!
ब्रिटिश सरकार से लेकर अब तक Policy of Isolation की नीति अपनाई गई इससे पहाड़ो पर राजतंत्र जैसी व्यवस्था लोकतंत्र में भी कायम है, आज राजनीतिक परिवर्तन की इस लड़ाई में राजा के अवतार जैसी धारणाओं तथा रहनुमा के आने का असर लोगों के जीवन पर भी दिखाई देता है औऱ राज्य गठन में देरी भी इसका उदाहरण है।
देवभूमि उत्तराखंड की समस्या का समाधान विशिष्ट औऱ मुखर इसीलिए भी है क्युकी इस आधुनिक दुनिया में भी भारत की पुरानी परंपराओं धर्म वेद पुराण और ध्यान को बचाया हुआ है जिसकी चर्चा पूरी दुनिया में है हिमालय की विरासत देश की अखंडता के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, लेकिन मुख्य धारा से हिमालय के इलाको की भौगोलिक दूरी होने के कारण यहाँ पे राजनीतिक विकल्पों की शून्यता है या पहुंच का अभाव है।
चाहे यहाँ की सांस्कृतिक विशिष्टता हो या यहां का पहाड़ी समाज भौगोलिक दूरी होने के कारण यहां के लोगो के मन में यह भाव है कि हमें नजरअंदाज किया जाता है औऱ सारा विकास का बजट मैदान में लगता है। और भी कई मुख्य चिंताएं उत्तराखंड समेत तमाम हिमालय क्षेत्र को औऱ गंभीर बनाती है,