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उत्तराखंड की 7499 ग्राम पंचायतों का ओबीसी आरक्षण हुआ तय, आयोग ने मुख्यमंत्री को सौपी रिपोर्ट

 

उत्तराखंड की 7499 ग्राम पंचायतो का ओबीसी आरक्षण हुआ तय। एकल सदस्य समर्पित आयोग के अध्यक्ष बी एस वर्मा ने बृहस्पतिवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को यह रिपोर्ट सौप दी। राज्य के भीतर स्थानीय निकायों में सभी स्तरों पर अन्य पिछड़ा वर्ग के पिछड़ेपन की प्रकृति और उसके निहितार्थ की समसामयिक एवं अनुभवजन्य तरीके से गहन जांच करने के लिए गठित एकल सदस्य समर्पित आयोग के अध्यक्ष बी एस वर्मा ने ग्रामीण स्थानीय निकायों के सामान्य निर्वाचन के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण, प्रतिनिधित्व देने के लिए 12 जिलों की तीसरी रिपोर्ट सौंपी। इससे पहले आयोग ने 14 अगस्त 2022 को हरिद्वार की प्रथम रिपोर्ट सौंपी थी। हरिद्वार की प्रथम रिपोर्ट और बाकी 12 जिलों की तृतीय रिपोर्ट के त्रिस्तरीय पंचायतो में जैसे जिला पंचायत अध्यक्षों के कुल 13, जिला पंचायत के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रो (वार्ड) के कुल 358, क्षेत्र पंचायत प्रमुख के कुल 89, क्षेत्र पंचायत के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रो (वार्ड) के कुल 2974, ग्राम पंचायत प्रधानों के कुल 7499 और ग्राम पंचायत के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रो (वार्ड) के कुल 55,589 पदों पर ओबीसी को प्रतिनिधित्व देने के लिए 2011 की जनगणना के आधार पर आयोग ने अपनी सिफारिश की है।

इस रिपोर्ट के हिसाब से जिन ग्राम पंचायतो, क्षेत्र पंचायतो, जिला पंचायतो में ओबीसी की आबादी ज्यादा है, वहां आरक्षण ज्यादा मिलेगा जबकि जहां आबादी कम है वहां ओबीसी का प्रतिनिधित्व भी कम होगा। अभी सरकार को इस रिपोर्ट को स्वीकार करना है। इस अवसर पर कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज, गणेश जोशी, राज्यसभा सांसद नरेश बंसल, विधायक सविता कपूर, बृजभूषण गैरोला, सचिव पंचायती राज चंद्रेश यादव, निदेशक पंचायती राज निधि यादव , अपर सचिव पंचायती राज पन्नालाल शुक्ला, सदस्य सचिव डीएस राणा, उपनिदेशक मनोज कुमार तिवारी व आयोग के से सुबोध बिल्जवान उपस्थित रहे।

27 नवंबर को खत्म हुआ था पंचायत का कार्यकाल

राज्य में हरिद्वार को छोड़कर बाकी 12 जिलों की ग्राम पंचायत का कार्यकाल पिछले साल 27 नवंबर, क्षेत्र पंचायत का 29 नवंबर और जिला पंचायत का 1 दिसंबर को कार्यकाल खत्म हो गया था। इसके चुनाव वर्ष 2019 में हुए थे। जबकि हरिद्वार का त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव वर्ष 2022 में हुआ था फिलहाल सभी ग्राम पंचायत प्रशासकों के हवाले हैं।

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