30.1 C
Dehradun
Tuesday, July 1, 2025
Google search engine
Homeराज्य समाचारउत्तराखंडगढ़वाली कुमाऊनी भाषा सदियों से उत्तराखंड के सांस्कृतिक ताने-बाने का अभिन्न अंग...

गढ़वाली कुमाऊनी भाषा सदियों से उत्तराखंड के सांस्कृतिक ताने-बाने का अभिन्न अंग रही है- शीशपाल गुसाईं

 

उत्तराखंड की प्रमुख बोली भाषा गढ़वाली और कुमाउनी में युवा पीढ़ी, बच्चों की रुचि नहीं!

 

……………………………………………………….
………………………………………………………
सांस्कृतिक विविधता और विरासत को बनाए रखने के लिए भाषाओं का संरक्षण एक महत्वपूर्ण पहलू है। भाषा सिर्फ संचार का जरिया नहीं है, बल्कि यह समुदाय की पहचान और इतिहास का प्रतिबिंब भी है। यह देखना निराशाजनक है कि दुनिया भर में कई भाषाएं विलुप्त होने की कगार पर है अनुमान है कि 2050 तक 3500 भाषाएं विलुप्त होने के खतरे में है इनमें 197 भाषा भारत की हैं जिनमें उत्तराखंड की बंगाणी भाषा है। उत्तराखंड की मुख्य बोली जाने वाली भाषाएं गढ़वाली और कुमाऊनी भी कम खतरे में नहीं है। गढ़वाली कुमाऊनी भाषा सदियों से उत्तराखंड के सांस्कृतिक ताने-बाने का अभिन्न अंग रही है हालांकि भाषाओं को बढ़ावा देने और सुरक्षित करने में की पहल की कमी उन्हें खतरे में डाल रही है।

हाल के अनुमानों के अनुसार गढ़वाली कुमाऊनी बोली भाषा धारा प्रवाह बोलने वाले लगभग कुल 4 लाख लोग ही बचे हैं। अगर मौजूदा रुझान रहा, तो अगले एक दशक में इन भाषाओं के विलुप्त होने का खतरा है। गढ़वाली और कुमाऊनी भाषाओं के पतन में योगदान देने वाले कारकों में से एक बेहतर अवसरों की तलाश में उत्तराखंड से लोगों का दूसरे राज्य में पलायन है। अनुमान है कि उत्तराखंड में 35 से 40 लाख प्रवासी वर्तमान में देश के अन्य भागों में रहते हैं जिनमें से 25% गढ़वाली और कुमाऊनी बोली भाषा में पारंगत है नए वक्ताओं की कमी विशेष रूप से युवा पीढ़ी के बीच इन भाषाओं के अस्तित्व के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है।

उत्तराखंड में गढ़वाली कुमाऊनी भाषाओं के प्रति दिखाई गई उदासीनता के विपरीत कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलुगू गुजरात पंजाब उड़ीसा बंगाल और भोजपुरी जैसे कई अन्य राज्य अपनी स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय कदम उठा रहे हैं। इन राज्यों में स्थानीय सरकारें स्कूलों में क्षेत्रीय भाषाओं की शिक्षा अनिवार्य बना रही है, जिससे भविष्य की पीढ़ियों के लिए उनका अस्तित्व निरंतर सुनिश्चित हो सके।

उत्तराखंड सरकार के लिए गढ़वाली और कुमाऊनी भाषाओं के संरक्षण के महत्व को पहचानना और उन्हें बढ़ावा देने और सुरक्षित करने के लिए ठोस कदम उठाना अनिवार्य है इन भाषाओं को उनके अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए शिक्षा प्रणाली, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और मीडिया में शामिल करने के प्रयास किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त भाषा पुनरोद्धार कार्यक्रम, भाषा प्रलेखन, भाषा संरक्षण कार्यशालाएं जैसी पहल इन लुप्तप्राय भाषाओं की संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

गढ़वाली और कुमाऊनी भाषाओं के विलुप्त होने के सांस्कृतिक विरासत और विविधता को अपूरणीय क्षति होगी। सरकार नेताओं , शिक्षकों और भाषा के प्रति उत्साही लोगों सहित सभी हित धारकों के लिए एक साथ आना इन लुफ्तप्रायः भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में का महत्वपूर्ण है केवल सामूहिक प्रयासों के माध्यम से ही हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं की गढ़वाली और कुमाऊनी जैसे बोली भाषा आने वाली पीढियां के लिए हमारे सांस्कृतिक प्रदेश को समृद्ध करती रहे।
##

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

spot_img

STAY CONNECTED

123FansLike
234FollowersFollow
0SubscribersSubscribe

Latest News