देहरादून: उत्तराखंड की विधानसभा के मानसून सत्र में विधानसभा से पारित उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा अधिनियम जो अब श्री राज्यपाल की सहमति हस्ताक्षर के बाद कानून बन गया है भारतीय संविधान की धारा २५ व धारा २६ का खुला उल्लंघन है और न्यायालय में इसको चुनौती दी गई तो सरकार को इस मुद्दे पर मुंह की खानी पड़ेगी यह बात आज उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष संगठन सूर्यकांत धस्माना ने प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में पत्रकारों से बातचीत में कही। श्री धस्माना ने कहा कि यह कानून धामी सरकार केवल अपने धार्मिक ध्रुवीकरण के एजेंडे के चलते लाई है और इसका कोई लेना देना राज्य के अल्पसंख्यक समुदाय के शिक्षा में सुधार या शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने की दृष्टि से नहीं है। श्री धस्माना ने कहा कि राज्य में अलग अलग अल्प संख्यक समुदाय के जितने भी शैक्षणिक संस्थान हैं उनका बाकायदा राज्य सरकार के शिक्षा विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र ले कर व सोसायटी ऑफ रजिस्ट्रेशन कानून का पालन करने के बाद ही संचालन होता है किन्तु वे अपने संस्थान में किस बोर्ड की संबद्धता लें यह उनको तय करने की स्वतंत्रता है इसके लिए उनको बाध्य नहीं किया जा सकता। श्री धस्माना ने कहा कि सिख संस्थाओं , ईसाई मिशनरी के अनेक स्कूल सीबीएसई आईसीएसी बोर्ड की संबद्धता से संचालित होते हैं और अनेक स्कूल तो अंतराष्ट्रीय बोर्डों से संबद्धता रखते हैं तो ऐसे में राज्य की सरकार किसी भी अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान को कैसे उत्तराखंड बोर्ड की संबद्धता के लिए बाध्य कर सकती है। श्री धस्माना ने कहा कि सरकार की मंशा किसी अल्पसंख्यक वर्ग के शैक्षणिक उत्थान की नहीं बल्कि केवल मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय के मदरसों को निशाना बना कर धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति करने की है। श्री धस्माना ने कहा कि राज्य में संचालित होने वाले मदरसों के पंजीकरण व संचालन के लिए भी सरकार के नियम व कानून हैं किन्तु अगर कोई उनका पालन नहीं कर रहा तो यह जिम्मेदारी राज्य सरकार के अधीन चलने वाले मदरसे बोर्ड की है और इसके लिए नियमानुसार चल रहे मदरसों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। श्री धस्माना ने कहा कि संविधान की धारा 25 देश के प्रत्येक नागरिक को उसकी रुचि और उसके अंतःकरण की स्वतंत्रता अपने धर्म को मानने उसके अनुसार आचरण करने व उसका प्रचार करने की स्वतंत्रता देता है। श्री धस्माना ने कहा कि इसी प्रकार संविधान की धारा २६ भारत के सभी धार्मिक समूहों को अपने धार्मिक मामलों और संस्थानों का प्रबंधन करने की स्वायत्तता प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड का यह नया कानून कहीं ना कहीं इन दोनों संवैधानिक धाराओं का अतिक्रमण व उल्लंघन करता है इसलिए कांग्रेस पार्टी इस कानून को अनावश्यक मानती है और सरकार को इसे वापस लेने की मांग करती है।
सादर
सूर्यकांत धस्माना
वरिष्ठ उपाध्यक्ष संगठन
प्रदेश कांग्रेस कमेटी उत्तराखंड
उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा कानून असंवैधानिक: संविधान की धारा 25 व 26 का उल्लंघन करता नया कानून
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