राज्यपाल ने कहा कि ‘हिमालय कॉलिंग’ हिमालय की रक्षा और संरक्षण के लिए हम सभी की सामूहिक प्रतिबद्धता
तीन दिवसीय वैश्विक सम्मेलन हिमालय इंस्टिट्यूट फॉर लर्निंग एंड लीडरशिप HILL द्वारा देहरादून कैंपस में किया जा रहा आयोजित
यूपीईएस में तीन दिवसीय ‘हिमालय कॉलिंग -2025’ वैश्विक सम्मेलन : राज्यपाल ने किया उद्घाटन

देहरादून। आज उत्तराखंड की प्रसिद्ध यूपीईएस यूनिवर्सिटी में “हिमालय कॉलिंग – 2025” का भव्य शुभारंभ हुआ । यह तीन दिवसीय वैश्विक सम्मेलन हिमालय इंस्टिट्यूट फॉर लर्निंग एंड लीडरशिप HILL द्वारा देहरादून कैंपस में आयोजित किया जा रहा है। यह कार्यक्रम “हिमालय के साथ उठो, और एसडीजी की गति बढ़ाओ” विषय पर आधारित है। यह आयोजन हिमालय की सांस्कृतिक, पर्यावरणीय और बौद्धिक धरोहर का वार्षिक उत्सव है, जिसमें स्थिरता sustainability नेतृत्व और नवाचार पर संवाद प्रदर्शनी और सहयोग के लिए मंच तैयार किया गया है। इस शिखर सम्मेलन का उद्देश्य हिमालय की प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक समृद्धि को सामने लाना, सतत विकास पर शोध और नीति चर्चाओं को बढ़ावा देना, युवाओं को नेतृत्व के लिए प्रेरित करना और HILL को ज्ञान और विचार नेतृत्व का प्रमुख केंद्र बनाना है।
वही कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने यूपीईएस में हिमालयन इंस्टीट्यूट फॉर लर्निंग एंड लीडरशिप (हिल) द्वारा आयोजित तीन दिवसीय वैश्विक सम्मेलन ‘हिमालय कॉलिंग 2025’ का उद्घाटन किया। राज्यपाल ने कहा कि ‘हिमालय कॉलिंग’ हिमालय की रक्षा और संरक्षण के लिए हम सभी की सामूहिक प्रतिबद्धता है। उन्होंने कहा कि हिमालय हमारी धरती और हमारी आत्मा दोनों के संरक्षक हैं। उन्होंने यूपीईएस की पहल की सराहना करते हुए कहा कि यह मंच वैज्ञानिकों, नीति-निर्माताओं, छात्रों और विभिन्न समुदायों को एक साथ लाकर स्थायी समाधान खोजने का प्रयास कर रहा है।
उन्होंने कहा कि हिमालय केवल पर्वत नहीं हैं, बल्कि हमारी जीवन-रेखा हैं। उनकी विशेष भौगोलिक परिस्थितियाँ हमें शोध और अध्ययन का आह्वान करती हैं। आज वैश्विक स्तर पर हिमालय को समझने और संरक्षित करने का प्रयास समय की मांग है। इसलिए सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स को प्राप्त करने की दिशा में हिमालय की रक्षा करना मानवता की साझा जिम्मेदारी है।
राज्यपाल ने कहा कि हिमालय के संरक्षण में ही मानवता और प्रकृति का कल्याण निहित है। आज प्रकृति हमें बार-बार चेतावनी दे रही है- कभी बाढ़ और बादलों के फटने के रूप में, तो कभी बढ़ती गर्मी और प्रदूषण के रूप में। यह संकेत हैं कि जल, जंगल और जमीन की अनदेखी मानवता के लिए संकट बन रही है।
उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, नदियों का प्रदूषण और कंक्रीट के जंगल हमारे अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह खड़े कर रहे हैं। हमें यह समझना होगा कि प्रकृति ने जो दिया है, उसे उसी के स्थान पर रहने देना आवश्यक है। हम सभी को इस चेतावनी को समझना होगा, और पौधरोपण, जल संरक्षण और पर्यावरणीय संतुलन की दिशा में पहल करनी होगी।
उद्घाटन समारोह एमएसी हॉल में हुआ। इसी के साथ हिमालयी उत्पादों की प्रदर्शनी भी खोली गई, जिसमें 400 से अधिक वस्तुएं -हस्तशिल्पए खाद्य उत्पाद और स्मृति.चिह्न, प्रदर्शित की गईं। यह प्रदर्शनी 9 से 11 सितम्बर तक प्रतिदिन सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक रहेगी। साथ ही हिमालयी फोटोग्राफी प्रदर्शनी भी लगाई गई है। सम्मेलन में 25़ सत्र और 128 प्रमुख वक्ता शामिल होंगे।
तीन दिवसीय यह सम्मेलन हिमालय की सांस्कृतिक, पर्यावरणीय और बौद्धिक धरोहर को समर्पित है जिसमें देश एवं विदेश के चिंतक और पर्यावरणविद् चिंतन और मंथन करेंगे। इस अवसर पर राज्यपाल ने परिसर में हिमालय के उत्पादों पर आधारित लगी प्रदर्शनी का अवलोकन किया।
इस आयोजन में 700 से अधिक छात्र और 1600 से अधिक प्रतिनिधि ऑफलाइन और ऑनलाइन माध्यम से शामिल हो रहे हैं। इसमें 17 ऑफलाइन और 9 ऑनलाइन सत्र आयोजित होंगे। राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ, सामाजिक नेता और उद्योग जगत के प्रतिनिधि इसमें मुख्य भाषण देंगे, जबकि यूपीईएस नेतृत्व द्वारा आयोजित गोलमेज चर्चाओं में शोध तकनीकी हस्तांतरण और सामुदायिक कार्यों पर ठोस सहयोग को बढ़ावा दिया जाएगा।
इस अवसर पर यूपीईएस के कुलपति डॉ. राम शर्मा ने कहा कि “हिमालय कॉलिंग एक जीवंत कक्षा है, जहाँ वैज्ञानिक, नवप्रवर्तक, कलाकार, नीति-निर्माता और समुदाय एक साथ मिलकर शोध को व्यवहार में बदल रहे हैं और सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को वहीं गति दे रहे हैं, जहाँ उनकी सबसे अधिक आवश्यकता है- हिमालय की धरती पर। यूपीईएस को गर्व है कि HILL के माध्यम से इस पहल को दिशा दे रहा है और अपने छात्रों को उद्देश्यपूर्ण नेतृत्व के लिए सशक्त बना रहा है। हमें गर्व है कि यूपीईएस इस पहल को दिशा दे रहा है और अपने छात्रों को उद्देश्यपूर्ण नेतृत्व के लिए तैयार कर रहा है। वैज्ञानिकों, नवप्रवर्तकों, कलाकारों, नीतिनिर्माताओं और समुदायों को एक साथ लाकर हम शोध को व्यवहार में बदल रहे हैं
सम्मेलन में यूपीईएस के चेयरमैन प्रो. सुनील राय ने उपस्थित सभी लोगों का स्वागत किया। हिल के निदेशक डॉ. जे.के. पांडेय ने कहा कि “इस वर्ष हमारा ध्यान समाधान-प्रधान दृष्टिकोण पर है। हम शोध को सामुदायिक ज्ञान से जोड़ रहे हैं, हिमालयी उत्पादों और फोटोग्राफी को प्रदर्शित कर रहे हैं और गोलमेज संवाद के माध्यम से दीर्घकालिक सहयोग की नींव रख रहे हैं। हमारा उद्देश्य युवाओं को यह समझाना है कि हिमालय कोई समस्या नहीं, बल्कि एक साथी है, जिसका सम्मान और पुनर्जीवन आवश्यक है।
तीन दिनों तक चलने वाला हिमालय कॉलिंग 2025 विविध विषयों की यात्रा को प्रस्तुत करेगा। पहले दिन का केंद्र बिंदु होगा ईएसजी, पर्वतीय आजीविका, खाद्य सुरक्षा, आपदा से निपटने की क्षमताए एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस और ऊर्जा अनुकूलन। दूसरे दिन कार्यक्रम मिथक, इतिहास और कला को विज्ञान से जोड़ते हुए आगे बढ़ेगा, जिसमें नाज़ुक पारिस्थितिक तंत्रों में मानवाधिकार, जलवायु मॉडलिंग, अक्षय ऊर्जा और आधुनिक जीवन के लिए हिमालय की प्राचीन ज्ञान परंपरा पर चर्चा होगी। इस दिन का विशेष आकर्षण होगा उच्च स्तरीय राउंड टेबल “हिमालय के सतत विकास के लिए प्रयासों का समन्वय, जिसमें 30 से अधिक विशेषज्ञ, एनजीओ और संगठन मिलकर साझा कार्ययोजना तैयार करेंगे। तीसरे दिन का समापन वैलेडिक्टरी सत्र और सांस्कृतिक संवाद के साथ होगाए जिसमें यह विचार किया जाएगा कि किस तरह स्थानीय परंपराओं को सतत विकास में शामिल किया जाए। समापन सत्र में प्रमुख वक्ता होंगे -डॉ. नितिन सेठ ( IFCPAR) पद्म भूषण सम्मानित डॉ. अनिल प्रकाश जोशी, डॉ. दुर्गेश पंत (डीजी यूकॉस्ट) और श्री मीनाक्षी सुंदारम (सचिव, उत्तराखंड सरकार)।
HILL के निदेशक डॉ.जे.के. पांडेय ने कहा कि इस वर्ष हमारा दृष्टिकोण समाधान-प्रधान है-जहाँ हम गहन शैक्षणिक शोध को सामुदायिक ज्ञान के साथ जोड़ रहे हैं, हिमालयी उत्पादों और फोटोग्राफी को प्रदर्शित कर रहे हैं और ऐसे गोलमेज संवाद आयोजित कर रहे हैं जो लंबे समय तक सहयोग का आधार बन सकें। सबसे महत्वपूर्ण, हम चाहते हैं कि युवा हिमालय को किसी समस्या की तरह नहीं बल्कि एक साथी की तरह देखें- जिसका सम्मान किया जाए और जिसे पुनर्जीवित किया जाए।
हिमालयी क्षेत्र आज चरम मौसम, ग्लेशियरों के पिघलने, जैव-विविधता हानि और भूकंपीय खतरों जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है। ऐसे में ‘हिमालय कॉलिंग’ जैसे सम्मेलन बेहद महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि यह विकास और संरक्षण के बीच संतुलन बनाने, लचीलापन बढ़ाने और पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक समाधानों में जोड़ने का कार्य करता है।
