उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में लगातार उत्तराखंड सरकार की मनमानी और तानाशाही के विषय संज्ञान में आ रहे है, इसी क्रम में उत्तराखंड निर्वाचन आयोग के सचिव द्वारा जारी पत्र दर्शाता है कि किस स्तर पर सरकार सरकारी मशीनरी एवं संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग किया जा रहा है ।
अब नगर निकाय में मतदान कर चुके लोगों को त्रिस्त्रीय पंचायत चुनावों में चुनाव लड़ने का अधिकार, उत्तरखंड निर्वाचन आयोग के सचिव द्वारा दे दिया गया है जो कि उत्तराखंड पंचायत राज अधिनियम 2016 और उत्तराखंड पंचायत राज संशोधन अधिनियम 2019 का खुला उलंघन है ,आखिर किसके दिशा निर्देशन पर ये हुआ ये सवाल आज प्रदेश की जनता जानना चाहती है ।
उत्तराखंड निर्वाचन आयोग ने नगर निकाय के वोटर रहे मतदाताओं के त्रिस्त्रीय पंचायतों में चुनाव लड़ने का रास्ता खोलने के लिए उत्तराखंड पंचायत राज अधिनियम, 2016 की धारा 9(13),10(ख)(1),54(3) और 91(3) का सहारा लिया है । ये धाराएं , किसी ग्राम पंचायत में दर्ज मतदाता को किसी भी स्तर के पंचायत चुनावों को लड़ने का अधिकार देती हैं लेकिन इन धाराओं का हवाला दे कर उत्तराखंड निर्वाचन आयोग के सचिव ने अर्द्ध सत्य का सहारा लिया है।
उत्तराखंड पंचायत राज संशोधन उत्तराखंड पंचायत राज अधिनियम, 2016 की धारा 9 (6) व 9(7) जिन मतदाताओं के नाम नगरीय क्षेत्रों में दर्ज हैं को उन्हें ग्राम पंचायत में मतदाता के रूप में नाम चढ़ाने से रोकती हैं। इसके अलावा जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 17 व 18 में भी ऐसे प्रावधान हैं.
उत्तराखंड निर्वाचन आयोग ने सत्ताधारी दल के दबाव में इस तरीके से आदेश जारी किया है, जो उत्तराखंड पंचायत राज अधिनियम 2016, उत्तराखंड पंचायत राज संशोधन अधिनियम 2019 और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 के विपरीत हैं.
इससे स्पष्ट होता है कि चुनाव प्रक्रिया की सुचिता और निष्पक्षता को ख़त्म और सत्ताधारी दल भाजपा को लाभ पहुँचाने की पूरी तैयारी है ।
कांग्रेस की मांग हैं कि उत्तराखंड निर्वाचन आयोग आज जारी किया गया पत्र वापस ले और नगर निकाय में मतदाता रहे लोगों को त्रिस्त्रीय पंचायत चुनाव लड़ने से रोके, उनका निर्वाचन निरस्त किया जाए.
यशपाल आर्य
नेता प्रतिपक्ष