हार के बाद ही जीत है ये कथन कहना है विरेन्द्र सिंह रावत से बने डॉ विरेन्द्र सिंह रावत उर्फ़ वीरू जिसने जीवन भर के उतार चढ़ाव मे खेल को नहीं छोड़ा कितनी भी मुसीबत आई 18 बार गंभीर घायल हुवे फिर कम बेक किया, डॉ रावत ने 8 साल की उम्र से बड़े भाई को फुटबाल खेलता देखकर खेलना सुरु किया लेफ्ट पैर से ड्रिबलिंग, स्कील, शूटिंग, बेहतरीन पास मे महारत हासिल की और सबसे पहले देहरा यंग क्लब से सुरुवात की 1980 से 1990 तक उसके बाद इंदिरा फुटबाल क्लब से खेले 1991 से 1999 तक एक साल जिप्सी फुटबाल क्लब, एक साल दून ईगेल, एक साल दून स्टार फुटबाल क्लब मे खेलकर अपना जलवा दिखाया लेफ्ट आउट की पोजीशन मे खेलकर अनगिनत गोल मारे उससे जाएदा बेहतरीन पास दिए जिसके कारण गोल हुवे 1986 मे अंडर 16 नेशनल खेला, 1998 मे अंडर 19 नेशनल खेला कई बार खेलते हुवे पैर मे चोट, छाती मे चोट, हाथ मे बहुत चोट लगी लेकिन हार नहीं मानी साथ ही साथ 1989 मे एक स्कूल विवेकानंद स्कूल जोगीवाला मे नौकरी सुरु कर दी खेल, नौकरी, पढ़ाई सब साथ साथ चलती रही, घर की माली स्थिति ठीक नहीं थी, दूध बेचा, गांय भैंस पाली 30 साल ग़रीबी देखी लेकिन फुटबाल से हमेशा प्यार रहा खिलाडी होते हुवे
फुटबाल के लिए डॉ रावत ने नौकरी छोड़ी, कर्जा लिया, जमीन बेची, जेल गया, शोषण सहा और कई बार घायल हुवा लेकिन हार नहीं मानी
47 सालों मे 3055 से ऊपर मैच खेले, 1998 मे फिर कोच और रेफरी बना जूनून और जोश ने नेशनल कोच और नेशनल रेफरी मे भी अलग पहचान दिलाई नाम कमाया कोच होते हुवे जिला, स्टेट, नेशनल स्तर पर 27500 से अधिक खिलाड़ियों को कोचिंग दी उनका भविष्य बनाया साथ साथ रेफरी करते हुवे भी जिला, स्कूल, स्टेट, नेशनल और इंटरनेशनल स्तर की प्रतियोगिता मे बेहतरीन 4200 मैच खिलाये, 25 सालों से लगातार 125 फुटबाल टूर्नामेंट जिला स्तर, स्टेट स्तर और आल इंडिया स्तर और नेशनल स्तर के कराएं गए, बेहतरीन काम करने पर खिलाडी, कोच और रेफरी के रूप मे अभी तक 70 के लगभग समस्त भारत के राज्यों से स्टेट, नेशनल और इंटरनेशनल अवार्ड मिल चुके है डॉ रावत ने समाज सेवा भी 27 सालों मे की है राज्य के मुख्य मुद्दों को प्रमुखता से उठाये है, समाज को शोशल मिडिया, अख़बार, चैनल के माध्यम से जागरूक किया है नशे से, फ़ास्ट फूड और मोबाइल से दूर रहने के जागरूक किया है
डॉ रावत का नाम पुरे हिंदुस्तान मे एक अलग पहचान है मिलियन लोग जानते है और 56 साल की उम्र मे युवा जैसा जोश है खेलते भी है कोचिंग भी देते है और रेफ्रीशिप भी करते है आज भी हर कोई उनको 56 साल का बोलकर 30 साल का युवा बोलते है, डॉ रावत कितनी भी मुसीबत आ जाए हमेशा सकारात्मक रहते है हर दिन नया करने की सोचते है और करते है
डॉ रावत देहरादून फुटबाल एकेडमी ( डी एफ ए ) संस्थापक अध्यक्ष/ हेड कोच की भूमिका मे 15 साल से चला रहे है 5 साल से 21 साल के बालक और बालिकाओं को कोचिंग देकर उनका भविष्य बना रहे है और 15 साल से उत्तराखंड फुटबाल रेफरी एसोसिएशन के सचिव है नए नए रेफरी बना रहे है अभी तक 75 स्टेट, नेशनल और इंटरनेशनल रेफरी बना चुके है हजारों नेशनल कोच बना चुके है
हजारों खिलाडी को नेशनल और इंटरनेशनल खिला दिया है,
डॉ रावत उत्तराखंड राज्य आंदोलन कारी भी है और पूर्व विधायक प्रत्याशी भी रह चुके है, डॉ रावत खेलो मास्टर्स गेम्स फाउंडेशन ऑफ़ उत्तराखंड के महासचिव है चार साल से जिसमें 30 साल से 80 साल के बुजुर्ग खिलाड़ियों को जागरूक कर रहे है और तीन साल से टीम की नेशनल स्तर पर गोल्ड, सिल्वर, कांस्य पदक जीता चुके है फुटबाल और एथलेटिक्स मे डॉ रावत अंत मे कहते है ज़ब तक जीवन है हार ना माने समाज के हित के लिए कुछ ना कुछ करते रहे
असफलता एक चुनौती है इसे स्वीकार करो क्या कमी रह गयी देखो और सुधार करो ज़ब तक सफल ना तुम नींद चेंन को त्यागो तुम, संघर्ष का मैदान छोड़कर मत भागो तुम कुछ किए बिना ही जय जयकार नहीं होती कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
इन पंक्तियों को जीवन भर अमल करो एक दिन सफलता जरूर मिलेगी आपको