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पौड़ी की रेशमा देवी ने पेश की महिला उद्यमिता की मिसाल: राज्य स्तरीय तीलू रौतेली पुरस्कार से होंगी सम्मानित

रेशमा ने अपनी मेहनत और आत्मविश्वास के बल पर हासिल किया यह मुकाम: आज पहाड़ की अन्य महिलाओं के लिए बनी प्रेरणा स्रोत

पौड़ी गढ़वाल। उत्तराखंड की महिलाएं आज हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा बनवा रही है। आज सुदूर पर्वतीय क्षेत्रों से निकलकर भी महिलाएं उद्यमिता के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान बना रही है।

कहते हैं अगर मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो सफलता के रहा अपने आप खुलते चले जाते हैं। इस बात को सच कर दिखाया है पौड़ी गढ़वाल के ग्राम डुंगरी गांव की रहने वाली रोशमा देवी ने। एक साधारण कृषक परिवार में जन्मी रोशमा देवी ने अपने जीवन में कई चुनौतियों का सामना किया, लेकिन कभी हार नहीं मानी। 12 दिसंबर 1991 को ग्राम गमड़ु (गगनपुर), ब्लॉक खिर्सू में जन्म लेने वाली रोशमा देवी ने विवाह के बाद खेती और पशुपालन को ही अपने जीवन का आधार बनाया। अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने न केवल आत्मनिर्भरता हासिल की बल्कि क्षेत्र की अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन गयीं। उनके उत्कृष्ट कार्य और सामाजिक योगदान को देखते हुए रोशमा देवी को वर्ष 2024-25 के लिए राज्य स्तरीय तीलू रौतेली पुरस्कार हेतु चयनित किया गया है। यह उपलब्धि न केवल उनके व्यक्तिगत परिश्रम का परिणाम है, बल्कि पूरे पौड़ी गढ़वाल जिले के लिए गर्व का विषय है।

 

 

रेशमा पिछले 15 वर्षों से कृषि और पशुपालन में सक्रिय रोशमा देवी ने सब्ज़ी उत्पादन, पहाड़ी अनाज, तिलहन, दलहन, मशरूम उत्पादन तथा डेयरी में उल्लेखनीय कार्य किया है। उनके पास जर्सी, बद्री और एचएफ नस्ल की गायें हैं और वे प्रतिदिन 30 से 35 लीटर दूध का उत्पादन करती हैं। साथ ही पनीर और देसी घी का भी उत्पादन कर अतिरिक्त आय अर्जित कर रही हैं। सब्ज़ी उत्पादन में वे आलू, प्याज, मटर, बीन्स, शिमला मिर्च, पत्तागोभी, फूलगोभी, लौकी, कद्दू, टमाटर, तोरी और भिंडी जैसी कई फसलें उगाती हैं। इस वर्ष उन्होंने 8 क्विंटल आलू का जैविक उत्पादन कर ₹40 प्रति किलो के भाव से बेचते हुए लागत घटाकर लगभग ₹20,000 का शुद्ध लाभ अर्जित किया।

पहाड़ की विकट परिस्थितियों में रह रहकर किसी महिला के लिए यहां तक पहुंचाना और यहां मुकाम हासिल करना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। रेशमा ने अपने मेहनत और आत्मविश्वास के दम पर यहां सफलता अर्जित की है।

 

रोशमा देवी पहाड़ी खेती की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए गहत, भट्ट, मडुआ, झंगोरा जैसे अनाज का उत्पादन कर रही हैं। इसके अलावा उन्होंने दलहन उत्पादन में मसूर, सोयाबीन और तूर दाल की खेती कर अच्छी पैदावार प्राप्त की। मसूर की फसल से उन्हें ₹180 से ₹200 प्रति किलो का मूल्य मिला। तिलहन उत्पादन में उन्होंने लगभग 2 क्विंटल सरसों का उत्पादन किया, जिससे सरसों के तेल से घरेलू और व्यावसायिक दोनों स्तरों पर लाभ मिला।

कृषि के साथ-साथ रोशमा देवी ने समाज में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने जय माँ लक्ष्मी महिला समूह और माँ बालमातेश्वरी मधुरस स्वयंसेवी संस्था के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं को आधुनिक कृषि तकनीक अपनाने के लिए प्रेरित किया। उनके नेतृत्व में मनरेगा के अंतर्गत 1200 पौधों का रोपण किया गया। उनके प्रयासों से न केवल महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने का अवसर मिला बल्कि क्षेत्र में पलायन रोकने में भी मदद मिली।

उनकी मेहनत और उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें कई सम्मान मिले हैं। उन्होंने उद्यान विभाग द्वारा श्रीनगर गढ़वाल में आयोजित बैकुंठ चतुर्दशी मेले की प्रदर्शनी में सब्ज़ी उत्पादन के लिए प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया।

ग्रामीण रोजगार प्रशिक्षण संस्थान, पौड़ी द्वारा भी उन्हें सम्मानित किया गया। इसके अलावा 2013 में उन्होंने ग्रेटर नोएडा में इंस्टीट्यूट ऑफ हॉर्टिकल्चर टेक्नोलॉजी द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम में प्रतिभाग किया। रोशमा देवी की सफलता यह साबित करती है कि यदि संकल्प मजबूत हो तो सीमित संसाधनों में भी बड़े सपने पूरे किए जा सकते हैं।

जिला कार्यक्रम अधिकारी देवेन्द्र थपलियाल ने बताया कि रोशमा की उपलब्धि देखते हुए उनका चयन राज्य स्तरीय तीलू रौतेली पुरस्कार हुआ है। इससे अन्य महिलाओं को भी प्रेरणा मिलेगी।

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