
हिमालय संस्कृति केंद्र में निनाद- 2025 की दूसरी सुबह आंचलिक स्वरलहरियों से गुंजायमान रही। अल्मोड़ा के पूरन बोरा के दल ने हुड़के की थाप और छोलिया नृत्य के साथ इसकी शुरूआत की। ओपन थिएटर के मंच पर उपनिदेशक आशीष कुमार ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इसके उपरांत नृत्यांगन संस्थान देहरादून द्वारा इला पंत के नेतृत्व में गंगावतरण नृत्य नाटिका की भावपूर्ण प्रस्तुती दी गई। गंगा और हिमालय का महत्व बताने दर्शाती इस पहली प्रस्तुतिं से माहौल भक्तिमय हो उठा।

हिमांचल का खोडा नृत्य
सबसे पहले हिमांचल प्रदेश के सिरमौर से पहुंचे गोपाल सिंह के दल ने अपनी प्रस्तुति दी। जिसमें धनुष बाण के साथ कौरवों और पांडवों के समर्थकों का साठी पानसाई नृत्य किया गया। इसके बाद खोडा नृत्य हुआ। इस पारंपरिक नृत्य में महिला कलाकारों के सिर पर लोटा और जलते दिये थे, जबकि पुरूष कलाकारों के परात घुमाने के करतब ने दर्शकों को तालियां पीटने पर मजबूर कर दिया। यह दल राष्ट्रीय सांस्कृतिक कला केंद्र पटियाला से जुड़ा है। लिहाजा देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी कई बार भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।

लखिया बाबा ने दिया आशीष
अगली प्रस्तुति पर्वतीय सांस्कृतिक एवं साहित्यिक कला समिति पिथौरागढ़ की हुई। जिसमें हिलजात्रा और लखियाभूत लोकनाट्य ने समारोह में जान फूंक दी। पिथौरागढ़ के कुमोड़ गांव से शुरू हुई हिलजात्रा धान की रोपाई से संबंधित नृत्य है। जिसमें हिल का अर्थ है गीला और जात्रा का अर्थ यात्रा से है। इस नृत्य में शिव के गण लखियाभूत का किरदार सबका ध्यान अपनी ओर खींचता है। लखियाभूत विशेष नृत्य के जरिये लोगों को खुशहाली और सुख समृद्धि का आशिर्वाद देते हैं।

पेंट ब्रश से हुनर दिखा रहे चित्रकार
समारोह में रविवार को राष्ट्रीय कला कार्यशाला की भी शुरूआत हुई। दिव्य हिमालय राष्ट्रीय कला कार्य शाला में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश , पंजाब एवं उत्तराखंड के कलाकारो ने हिमालय के पर्वतीय सौंदर्य, संस्कृति, लोकनृत्य लोकगीतो का अंकन रंग रेखाओं के माध्यम से किया जा रहा है। अकरम खान, के एस गिल, धर्मेंद्र शर्मा, डा ओपी मिश्रा, संतोष साहनी, जाकिर हुसैन प्रोफेसर शेखर जोशी जैसे प्रख्यात कलाकार अपने कौशल का प्रदर्शन कर रहे हैं। कार्यशाला संयोजिका डॉ. ममता सिंह ने बताया कि रजत जयंती वर्ष में निनाद हिमालय संस्कृति उत्सव का आयोजन हिमालयी राज्यों के सांस्कृतिक आदान-प्रदान का सशक्त माध्यम बना है। जिसमें उत्तराखंड सहित विभिन्न राज्यों से पहुंचे चित्रकार शामिल हो रहे हैं। कार्यशाला से पूर्व संस्कृति सचिव श्री युगल किशोर पंत ने सभी मेहमान कलाकारों को सम्मानित किया।
परिचर्चा- उत्तराखंड में सिनेमा
निनाद 2025 में संास्कृतिक गतिविधियों के साथ ही विचारों के मंथन पर भी जोर दिया जा रहा है। इसी क्रम में 2 नवंबर को दिन के दूसरे सत्र में परिचर्चा कार्यक्रम की शुरूआत हुई। आज का विषय था-उत्तराखंड में सिनेमा। जिसमें उत्तराखंड के जाने माने फिल्म कलाकार हेमंत पांडे, वरिष्ठ पत्रकार सतीश शर्मा व बॉलीवुड में फिल्म निर्देशक भुवन टम्टा शामिल हुए। इस चर्चा में उत्तराखंड में फिल्मों की स्थिति और भविष्य पर मंथन किया गया। सबसे मुख्य बात यही आई कि उत्तराखंड में पहले कुछ बेहतर फिल्में बन चुकी हैं, लेकिन तब संसाधन नहीं थे। अब सरकार सिनेमा को प्रोत्साहित कर रही है, जिससे भविष्य में और बेहतर उत्तराखंडी सिनेमा आने की उम्मीद है। उत्तराखंड के आंचलिक सिनेमा के पिछड़ने के कारणों की पड़ताल भी की गई। सिनेमा व अभिनय के लिये बुनियादी ढांचे और जमीनी स्तर पर काम करने पर जोर दिया गया।
