निनाद- 2025 के मंच पर उतरा हिमालयी लोक

देहरादून। उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस समारोह के पांचवें दिन मानो हिमालयी लोक मंच पर उतर आया। पहले सत्र में उत्तराखंड सहित लद्दाख, तिब्बत, हिमाचल प्रदेश व मणिपुर के लोक कलाकारों ने प्रस्तुतियां दी। कार्यक्रम की शुरूआत पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने दीप प्रज्ज्वन करके की। उनके साथ उत्तराखंड संस्कृति एवं साहित्य कला परिषद की अध्यक्ष मधु भट्ट, अपर सचिव संस्कृति श्री प्रदीप जोशी, संस्कृति निदेशालय के उपनिदेशक श्री आशीष कुमार मौजूद रहे। मुख्य अतिथि के हाथों सभी मेहमान कलाकारों को शॉल व स्मृति चिन्ह भेंट किया गया।

पांडव और मुखौटा नृत्यों ने भरी ऊर्जा
सबसे पहले ढोल दमाउं, मशकबीन और भंकोरे के साथ जागरी सांस्कृतिक कला मंच घाट चमोली के कलाकार मंच पर पहुंचे। सधे हुए ढोल वादन के साथ जागर गायन और पांडवो के रूप में कलाकारों के अभिनय ने दर्शकों को रोमांचित कर दिया। इसके उपरांत दल ने पारंपरिक मुखौटा नृत्य प्रस्तुत किया। जिसकी लय ताल और गति ने कार्यक्रम में जान फूंक दी। दल के नायक हरीश लाल ने साथियों के साथ ढोल वादन में अपने हुनर का परिचय दिया।

लद्दाख की संस्कृति ने मोहा मन
देश के सीमांत और उच्च हिमालयी क्षेत्र लद्दाख के जोब्रा नृत्य समारोह का खास आकर्षण रहा। इसमें लद्दाखी जन जीवन के आधार याक को भी नृत्य करते दर्शाया गया, जिसने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया। ’’जोब्रा डांस लद्दाख का एक पारंपरिक लोकनृत्य है। यह नृत्य विशेष रूप से फसल कटाई के समय किया जाता है। इसमें गाँव के लोग, खासकर पुरुष और महिलाएँ, पारंपरिक वेशभूषा पहनकर सामूहिक रूप से नाचते हैं। इस नृत्य का उद्देश्य प्रकृति, देवताओं और स्थानीय देवी-देवताओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना होता है कि उन्होंने अच्छी फसल दी। जोब्रा डांस में धीमी और तालबद्ध गतियों के साथ स्थानीय वाद्ययंत्रों जैसे ढोल और सुरनाई की धुनें बजती हैं।

तिब्बती छात्रों का गुड लक डांस
तिब्बती होम फाउंडेशन राजपुर देहरादून के छात्रों ने गुडलक डांस की प्रस्तुति दी। जिसमें 14वें दलाई लामा की धार्मिक यात्रा का वर्णन आता है। यह तिब्बत का एक पारंपरिक लोकनृत्य है, जिसे शुभकामना नृत्य या सौभाग्य नृत्य भी कहा जाता है। यह नृत्य विशेष अवसरों पर किया जाता है- जैसे नए साल लोसर उत्सव, फसल कटाई, या किसी शुभ कार्य की शुरुआत के समय। तिब्बत होम फाउंडेशन के छात्र सौरभ ने इस नृत्य का परिचय देते हुए बताया कि इसमें नर्तक रंगीन पारंपरिक परिधान पहनकर ढोल, झांझ और तुरही जैसे वाद्ययंत्रों की ताल पर गोल घेरा बनाकर नाचते हैं। कई बार इसमें धार्मिक प्रतीकों और मुखौटों का प्रयोग भी होता है, जो बुरी आत्माओं को दूर भगाने और अच्छे भाग्य को बुलाने का प्रतीक है।
मणिपुरी बसंत रासलीला पर झूमे दर्शक
मणिपुर की वरिष्ठ कलाकार श्रीमती धनारानी देवी के नेतृत्व में पहुंचे कलाकारों ने कृष्ण राधा का होली नृत्य प्रस्तुत किया। जिसे बसंत रासलीला कहा जाता है। इस नृत्य में श्रीकृष्ण और राधा के साथ गोपियों का पारंपरिक नृत्य किया जाता है। मणिपुर की लोकसंस्कृति में यह एक धरोहर है। कलाकारों की भाव भंगिमा और परिधानों ने दर्शकों को आकर्षित किया।
नाटक के जरिये दिया पर्यावरण बचाने का संदेश
समारोह के दूसरे सत्र में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के डॉ.एहसान बख़्श के निर्देशन में नाटक का मंचन किया गया। यह नाटक पांच दिवसीय कार्यशाला में डॉ.बख़्श द्वारा प्रशिक्षित कलाकारों ने अभिनय किया। नाटक की कहानी पहाड़ के कुमाउं अंचल के एक गांव की है। जिसमें गांव के प्रधान के यहां सींग वाला बच्चा पैदा होता है। निराश होकर प्रधान अपने नौकर से उसे मार डालने के लिये कहता है। नाटक का कथानक कुछ इस तरह बुना गया है कि सींग वाला वह बच्चा बड़ा होकर और पढ़ लिख कर गांव लौट आता है। जो शुरू में कौतुहल का कारण बनता है लेकिन जल्द ही वह गांव में हरियाली बचाने के काम में लग जाता है। कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं कि गांव का प्रधान इस सीग वाले लड़के को गोली मारने पर उतारू हो जाता है, तभी उसका नौकर बताता है कि यह आपका ही बेटा है, जिसे मैंने मारा नहीं बल्कि जंगल में छोड़ दिया था। नाटक में भ्रष्टाचार और पर्यावरण पर खतरों पर प्रहार किया गया है। कलाकारों के सधे हुए अभिनय को दर्शकों ने जमकर सराहा।
फोटो गैलरी में हिमालय दर्शन
समारोह में उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद की ओर से फोटो प्रदर्शनी भी लगाई गई है। जिसका विषय है उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर और प्राकृतिक परिदृश्य। इस फोटो प्रदर्शनी में उत्तराखंड हिमालय के खूबसूरत दृश्यों, मंदिरों, जन जीवन, वन्य जीवन, मेलों, उत्सवों और त्यौहारों की तस्वीरों से यह फोटो गैलरी सजी है। जिसमें अनूप शाह, उमेश गोंगा, राहुल गुहा, सतीश एच, दीप रजवार जैसे जाने माने फोटोग्राफरों समेत कई अन्य फोटोग्राफर्स के उत्कृष्ट फोटो शामिल हैं।
