
देहरादून। राज्य स्थापना दिवस समारोह निनाद का छठवां दिन भी हिमालय की विविध लोक संस्कृतियों के नाम रहा। पहले सत्र में उत्तराखंड सहित, लद्दाख के लोकगीतों के साथ ही ओपन थिएटर शास्त्रीय गायन से गूंज उठा। इस सत्र का शुभारंभ डोईवाला के विधायक ब्रजभूषण गैरोला ने किया। इस मौके पर मंच में संस्कृति निदेशालय के उपनिदेशक आशीष कुमार व उत्तराखंड साहित्य कला एवं संस्कृति परिषद की उपाध्या मधु भट्ट भी मौजूद रही।

जौनसार की संस्कृति ने मन मोहा
जन जाति क्षेत्र विकास समिति, कथियान डांगूठा त्यूनी के कलाकार सबसे पहले मंच पर उतरे। उन्होंने लोकवाद्यों के वादन के साथ मुख्य अतिथि का स्वागत किया। जौनसार का हारूल नृत्य वहां की संस्कृति का खास हिस्स है। कलाकारों ने इसकी उन्होंने दर्शकों का मन मोह लिया। पारंपरिक वेश भूषा में महिलाओं ने के साथ ही हाथों में फरसे और लोकगाथाओं का गायन इस नृत्य को खास बनाता है।

लद्दाख का शोंडोल- राजसी लोकनृत्य
शोंडोल नृत्य लद्दाख का एक पारंपरिक राजसी लोकनृत्य है, जिसे रॉयल लद्दाख डांस के नाम से भी जाना जाता है। यह नृत्य लद्दाख की समृद्ध बौद्ध संस्कृति, लोक परंपरा और समुदायिक उत्सवों का प्रतीक है। शोंडोल नृत्य में भाग लेने वाली महिलाएं लद्दाखी पारंपरिक पोशाक गोंचा पहनती हैं। सिर पर पेरक नामक विशिष्ट सिरपोश होता है, जिस पर फ़िरोज़ा, प्रवाल और चांदी के गहने जड़े होते हैं। उनकी पोशाक में ऊनी कपड़ा, रंगीन कमरबंद और स्थानीय कारीगरों द्वारा बनाए गए हस्तनिर्मित आभूषण होते हैं। आज हिमालय संस्कृति केंद्र इसी अद्भुत लोकनृत्य का गवाह बना।
रामचरित मानस से भक्तिमय हुआ माहौल
सुभारतीय इंस्टीट्यूट देहरादून की ओर से राम चरित मानस का गायन प्रस्तुत किया गया। जिससे माहौल भक्तिमय हो गया। इसके उपरांत गंधर्व महाविद्यालय करनपुर के छात्र छात्राओं ने मराठी, राजस्थानी और शास्त्रीय नृत्यों की प्रस्तुतियां दी। इस दौरान मुख्य अतिथि ने सभी दलों के कलाकारों को स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। उन्होंने इस आयोजन के लिये संस्कृति विभाग को बधाई दी।
परिचर्चा- नंदा देवी राजजात
समरोह में छठवें दिन दूसरे सत्र में हिमालयी महाकुम्भ नंदा देवी राज जात पर चर्चा हुई। जागर गायिका पद्मश्री बसंती बिष्ट ने नंदा के जागर गायन के साथ इसकी शुरूआत की। उन्होंने नंदा देवी राज जात को के उचित प्रबंधन के साथ ही पौराणिक और ऐतिहासिक झोड़ा गीतों व जागरों के संरक्षण की जरूरत बताई। नंदा देवी राज जात के विभिन्न आयामों पर शोध कर चुके डा.डीआर पुरोहित ने नंदा देवी राजजात के इतिहास की जानकारी दी। नंदा देवी राज जात के सचिव श्री भुवन नौटियाल ने हर बारह साल में आयोजित किये जाने वाली इस अनूठी यात्रा के आयोजन के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। नंदा देवी राज जात पर विशद अध्ययन करने वाले श्री केडी सिंह ने हर राजजात को का विश्लेषण करते हुए इसके स्वरूप् में आ रहे बदलावों पर बात की।
संस्कृति संरक्षण में संस्कृति विभाग ने किया बड़ा करार
संस्कृति विभाग, उत्तराखंड एवं हिमालयन सोसाइटी फॉर हेरिटेज एंड आर्ट कंज़र्वेशन (HIMSHACO) के बीच ऐतिहासिक सांस्कृतिक विरासत संरक्षण हेतु त्रिवर्षीय हिमालयन आर्ट कंज़र्वेशन प्रोजेक्ट के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए हैं।’
उत्तराखंड राज्य की अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर, जिसमें ऐतिहासिक वस्तुएं, मूर्तियाँ, चित्र, कपड़े, लकड़ी, धातु, कागज, सिक्के, पेंटिंग्स आदि सम्मिलित हैं, इनके संरक्षण की दिशा में नया अध्याय जुड़ गया है। संस्कृति विभाग, उत्तराखंड तथा सोसाइटी फॉर हेरिटेज एंड आर्ट कंज़र्वेशन ने टाटा ट्रस्ट् के सहयोग से इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु ’श्हिमालयन आर्ट कंज़र्वेशन प्रोजेक्ट्स’ के लिए साझेदारी की है।
इस परियोजना के तहत देहरादून में संरक्षण केंद्र स्थापित किया जाएगा, जहाँ अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार ऐतिहासिक व सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण किया जाएगा। इसके साथ ही राज्य के विभिन्न जिलों में बसे संग्रहालयों को तकनीकी सहायता प्रदान की जाएगी और स्थानीय संग्रहालय कर्मचारियों एवं स्थानीय छात्र छात्राओं का क्षमता संवर्द्धन व प्रशिक्षण किया जाएगा। यह तीन वर्षीय हिमालयन आर्ट कंज़र्वेशन प्रोजेक्ट श्री अनुपम साह द्वारा संचालित किया जाएगा ।
विशेष रूप से, सोसाइटी द्वारा अनुभवी विशेषज्ञ और संरक्षक टीम गठित कर ऐतिहासिक धरोहरों का वैज्ञानिक ढंग से संरक्षण सुनिश्चित किया जाएगा। इस सहयोग से राज्य की लोक एवं भौतिक धरोहरों का सरंक्षण सुनिश्चित होगा। संग्रहालयों के अमूल्य संग्रह को दीर्घकालिक सुरक्षा मिलेगी।स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षण व इस क्षेत्र में उच्च शिक्षा के अवसर मिलेंगे। साथ ही जनमानस में धरोहर संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ेगी।
एमओयू पर संस्कृति विभाग की सचिव/महानिदेश संस्कृति श्री युगल किशोर पंत ने हस्ताक्षर किए। उन्होंने कहा यह समझौता प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण व संवर्द्धन की दिशा में मील का पत्थर है, जिससे आने वाली पीढ़ियों के लिए भी उत्तराखंड की पहचान सुरक्षित रह सकेगी। उन्होंने यह भी बताया कि भविष्य में इस केंद्र में कला संरक्षण हेतु कार्यशालाओं का आयोजन किया जाएगा जिससे संरक्षण के क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर भी क्षमता का निर्माण हो सके।
हिमालनय सोसाइटी के सचिव श्री अनुपम शाह ने समझौते पर हस्ताक्षर किए। उन्होंने बताया कि संस्कृति विभाग, उत्तराखंड की सक्रियता के कारण ही उत्तराखंड हिमालयी राज्यों में पहला राज्य है जिसने इस परियोजना के अंतर्गत अपनी राजधानी में संरक्षण केंद्र स्थापित किया। उन्होंने टाटा ट्रस्ट का आभार करते हुए यह भी बताया कि जो सुदूर क्षेत्रों में मौजूद संग्रहालय अपनी कलाकृतियों को देहरादून स्थित संरक्षण केंद्र में लाने में सक्षम नहीं हैं उनका उपचार टीम द्वारा वहीं किया जाएगा। कार्यक्रम में राजकीय संग्रहालय अल्मोड़ा से जनमेजय तिवारी, सिद्धार्थ चंद्रा, विजय सिंह आदि शामिल हुए।
