आज टाउन हॉल में आयोजित महिला मंच के कार्यक्रम में उत्तराखंड आंदोलनकारी और महिला मंच की संयोजिका श्रीमती कमला पंत जी और गांधीवादी विचारक वैज्ञानिक डॉ. रवि चोपड़ा जी को सुनने का अवसर मिला।
श्रीमती पंत ने मंच की पिछले 31 वर्षों की यात्रा को इस प्रकार प्रस्तुत किया जैसे कि सारे संघर्षों का जीवंत चित्रण हमारे सामने हो। उन्होंने नशा नहीं रोजगार दो, वन बचाओ, नदी बचाओ, महिला पढ़ाओ-बढ़ाओ, जल, जंगल, रोजगार, उत्तराखंड अस्मिता, भूमि कानून, और राजधानी आंदोलन जैसे प्रमुख संघर्षों की गाथा सुनाई। उनका यह भावुक और प्रभावी वक्तव्य पूरे हॉल को उत्तराखंड के जयकारों से गूंजा गया। दर्शकों में जोश भर गया, और यह स्पष्ट हो गया कि राज्य आंदोलन की परिकल्पना जिस उम्मीद के साथ की गई थी, वह पूरी तरह से असफल हो गई है।
उन्होंने इस विडंबना को रेखांकित किया कि जिन आंदोलनकारियों ने अपने संघर्षों से राज्य का निर्माण किया, वे आज हाशिए पर हैं, जबकि जिनके पास न राज्य के लिए कोई भावना है और न ही कोई दूरदृष्टि, वे सत्ता के केंद्र में बैठे हैं। महिला मंच, जो हर नारी के सम्मान के लिए लड़ता है, ने अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया। अब यह हमारी जिम्मेदारी है कि ऐसे मंचों को तन, मन, और धन से सहयोग करें, ताकि संसाधनों की कमी कभी भी जन-जागरण के कार्यक्रमों में बाधा न बने।
श्रीमती पंत ने यह भी उल्लेख किया कि पहाड़ की बेटी अंकिता भंडरी हत्याकांड ने पुरे सिस्टम पर प्रश्न चिन्ह लगा दिए हैं | न्याय के लिए जनता लड़ती रही लेकिन सिस्टम के कानों में जून तक नहीं रेंगी | न जाने कब तक उत्तराखंड की बेटियों और बहुओं का शोषण होता रहेगा | लेकिन महिला मंच अपनी लड़ाई लड़ता रहेगा और शोषितों और बंचितों की आवाज बनकर इस लड़ाई को और मुखर ढंग से लड़ेगा | श्रीमती पंत की बातों ने उपस्थित जनसमूह को गहराई से झकझोर दिया।
इसके बाद, डॉ. रवि चोपड़ा जी ने अपने सारगर्भित भाषण में हिमालयी संरचना और इसके संरक्षण की महत्ता को बहुत ही सरल और प्रभावी ढंग से समझाया। उन्होंने गंगा की पवित्रता को बनाए रखने के लिए उसमें बांध न बनाए जाने की पुरजोर वकालत की। डॉ. चोपड़ा ने जलविद्युत उत्पादन के लिए सुरंगों और बांधों की तकनीक को पर्यावरण और समाज के लिए खतरा बताया।
उन्होंने हिमालयी समाज के उत्थान के लिए जल और जंगलों के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता बताई। पलायन को रोकने के लिए कृषि, उद्यानिकी, और जंगलों पर काम करने की बात कही। पलायन को उन्होंने उत्तराखंड के भविष्य के लिए एक बड़ी चुनौती करार दिया।
यह कार्यक्रम सिर्फ एक मंच नहीं था, बल्कि उत्तराखंड के संघर्ष, चिंतन, और भविष्य की दिशा को समझने का अवसर था। यह हम सभी का दायित्व है कि हम इन विचारों और आंदोलनों को आगे बढ़ाएं और एक समृद्ध, सशक्त, और आत्मनिर्भर उत्तराखंड के निर्माण में अपना योगदान दें।
: चन्दन घुघत्याल