Tuesday, January 14, 2025
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हिमालय हमारी संस्कृति, परंपरा और पहचान: मुख्यमंत्री धामी

 

उत्तराखण्ड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (यूकॉस्ट) एवम हेस्को द्वारा हिमालय संरक्षण सप्ताह के अवसर पर आयोजित की जा रही विभिन्न विचार श्रृंखला के क्रम में ‘हिमालय ज्ञान प्रणाली’ पर एक कार्यक्रम का आयोजन यूकॉस्ट परिसर में किया गया, जिसमें हिमालय क्षेत्र के संरक्षण और स्थायी विकास के लिए ज्ञान और तकनीक के आदान-प्रदान पर चर्चा की गई।

कार्यक्रम का आरंभ मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के वीडियो संदेश से हुई। मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर कहा कि हिमालय हमारे लिए गर्व का प्रतीक है, जो हमारी संस्कृति, परंपरा और पहचान का हिस्सा है। इस मौके पर सीएम धामी ने हिमालय संरक्षण के लिए स्थायी विकास की दिशा में काम करने पर जोर दिया, जिसमें स्थानीय समुदायों की भागीदारी महत्वपूर्ण है। इस दौरान सीएम द्वारा कहा गया कि सरकार हिमालय संरक्षण के क्षेत्र में किए जा रहे कार्यों में निरंतर प्रयासरत हैं, और इस दिशा में हमें आपसी सहयोग और साझेदारी की नितांत आवश्यकता है।

इस अवसर पर यूकॉस्ट महानिदेशक प्रो. दुर्गेश पंत ने अपने स्वागत उद्धबोधन में सभी विशिष्ट अतिथियों का स्वागत किया। इस मौके पर उन्होंने हिमालय की सुंदरता और जैव विविधता को संरक्षित करने पर विशेष जोर दिया। प्रो. पंत ने हिमालय ज्ञान प्रणाली पर बोलते हुए कहा कि यह प्रणाली हिमालय क्षेत्र के संरक्षण और विकास के लिए ज्ञान, तकनीक, और स्थानीय ज्ञान का संगम है।

अपने तकनीकी व्याख्यान में गढ़वाल विश्वविद्यालय के पूर्ण कुलपति प्रो. एस.पी. सिंह ने कहा कि कार्बन पृथक्करण हिमालय के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, क्योंकि यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में मदद कर सकता है, तथा हिमालय में वनस्पति और वृक्षारोपण के माध्यम से कार्बन सिक्वेस्ट्रेशन को बढ़ावा दिया जा सकता है।

यहाँ पद्मश्री कल्याण सिंह रावत ने हिमालय पर जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों से सभी को आगाह किया। उनके द्वारा कहा गया कि हिमालय क्षेत्र के गग्लेशियरों से पिघलती बर्फ एक बहुत खतरा ना बने
इसके लिए हमें एकजुट होकर कार्य करने होंगे जिसमे नवाचारी दृष्टिकोण अपनाकर स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी।

प्रो. जी.एस. राजवार ने अपने व्याख्यान में हिमालय क्षेत्र में उच्च शिक्षा के महत्व और चुनौतियों पर प्रकाश डाला, साथ ही साथ उन्होंने यह भी कहा कि हिमालय क्षेत्र में उच्च शिक्षा के लिए संसाधनों का उपयोग और नीतियों और कार्यक्रमों का विकास महत्वपूर्ण है।

आई.आई.टी. रुड़की के पूर्व वैज्ञानिक प्रो. अजय गैरोला ने हिमालय के पहाड़ी क्षेत्रों में जटिल भूभाग के प्रभाव पर चर्चा की। उन्होंने इस दौरान हिमालय के पहाड़ी क्षेत्रों में जटिल भूभाग के कारण नई चुनौतियों व समाधानों पर अपने विचार रखे।

डॉ. प्रमोद डोबरियाल, उप निदेशक, उच्च शिक्षा, उत्तराखंड ने “हिमालयी क्षेत्र के लिए शिक्षा और नवाचार” पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि हिमालयी क्षेत्र के विकास के लिए शिक्षा और नवाचार महत्वपूर्ण हैं, तथा हमें हिमालयी क्षेत्र की विशिष्ट चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए शिक्षा प्रणाली को विकसित करना होगा।

उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति डॉ. सुधा रानी पांडे ने नई पीढ़ी को प्रकृति के साथ जुड़ने की सलाह दी। उन्होंने लोगों में जागरूकता बढ़ाने और हिमालय ज्ञान प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए ईको क्लब्स के गठन का सुझाव दिया।

शिक्षाविद् कमला पंत ने इस अवसर पर अपनी कविताई पंक्तियों के माध्यम से हिमालय की सुंदरता का वर्णन किया। उन्होंने इस मौके पर कहा कि हमें हिमालय के संरक्षण के लिए व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदारी लेनी होगी इसी जरिए हम हिमालय संरक्षण की ओर अग्रसित हो सकते है।

इस मौके पर यूकॉस्ट द्वारा पर्यावरण और हिमालय संरक्षण के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले प्रतिष्ठित व्यक्तियों को हिम श्री सम्मान से सम्मानित किया गया। पुरस्कृत किए गए व्यक्तियों में प्रो. जी.एस. रजवार, प्रो. अजय गैरोला, प्रताप सिंह पोखरियाल, जगदीश नेगी, डॉ. शंभू प्रसाद नौटियाल, हिमानी पुरोहित, लाल सिंह चौहान, अंजना विलियम्स, पवन शर्मा, राकेश चंद्र जुगराण शामिल रहे।

कार्यक्रम का समापन यूकॉस्ट के संयुक्त निदेशक डॉ. डी.पी. उनियाल के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ हुआ। उन्होंने कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए सभी प्रतिभागियों, अतिथियों और आयोजनकर्ताओं का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन यूकॉस्ट की वैज्ञानिक अधिकारी श्रीमती कंचन डोभाल द्वारा किया गया। इस कार्यक्रम में विभिन्न संस्थानों के आए 150 से अधिक छात्र-छात्राओं और शिक्षकों, परिषद और आंचलिक विज्ञान केन्द्र के अधिकारियों और कर्मचारियों ने प्रतिभाग किया ।

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